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चतुर्विधदाननिरूपण
वहांफ्र स्त्री पुत्र धन आहारादिसे निशंक होकर युद्ध करते हैं। इसी प्रकार जो श्रावक जिनपूजोत्सवके लिये मंदिरमें जावें वे मलमूत्रादिकी शंकासे रहित रहें, मंदिरमें व्यर्थ इधर उधर टहले नहीं, किसी पदार्थको पावसे हटावे नहीं, इधर उधर देखें नहीं, अपने इष्ट मित्रादिकोंका स्मरण नहीं करें । एवं अपने गृहकृत्य संबंधी विचारोंको मममें लावे नहीं एकाग्रचित्तसे महोत्सवमें योग देवें ॥ ३७ ॥
सर्वे वीरभटा रणांगणतले तौमुल्यमिच्छंति ये । तांबूलोदकनालिकेरकदलीसस्यादि किंचिन्न ते ॥ संतुष्टाः प्रविचारका रिपुलयव्यापारबोधक्षमाः ।
श्रीजनोत्सवषीक्षका अघळयव्यापारदक्षास्तथा ॥ ३८ ॥ अर्थ-वार-योद्धा युद्धस्थानमें युद्ध करनेमेंही लगे रहते हैं, तांबूल पानी, नारियल, केला आदि खानेकी उन्हे चिंता नहीं रहती है, इसी लिये वे संतुष्ट होकर युद्ध करते हुए शत्रुवोको नाश करने में समर्थ होते हैं, इसी प्रकार जिनमहोत्सवमें लगे हुए जीव उसी में संलग्न होकर उतने समयतक खाना पीना वगैरह सब भूल जावे तभी वे यथार्थ रूपसे कर्मोको नष्ट करने के लिये समर्थ होते हैं ।
चैत्यावासगतिस्मृतेरनशनद्वंद्वस्य चोद्योगतो। बंधस्याष्टफलं लभेत गमनप्रारंभतश्चक्रमे ॥ पंक्तेदशजं फलं निजगृहद्वार्निर्गमान्मध्यतः ।
पक्षानन्नफलं गृहेक्षणवशान्मासोपवासोद्भवं ॥३९॥ . अर्थ-भावपूर्वक जिमचैत्यालयको जाने के विषयमें विचार करने मात्रसे दो उपवासका फल, सामग्री वगैरह के तैयार करने में चार उपवासका, गमन करनेके लिये प्रारंभ करनेसे आठ उपवासका, गमन करनेसे दस उपवासका, अपने घरके द्वारसे बाहर निकलने में बारह