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दानविधिद्रव्यदातपात्रलक्षण
अर्थ-जिस देशके मनुष्य दानादिकार्यों में आदरयुक्त हैं उस देशमें आधि व्याधि इत्यादि नष्ट होते हैं । राजादिकोंके द्वारा उत्पन्न बाधा भी नष्ट होती हैं । मनुष्य सब प्रीतिकर वचन बोलते हैं ॥ २३ ॥ ...: केदारोले शालिबीजेप्यनंता ( ? )। . नश्यंतीवानंतकर्माणि जीवे ॥ .
नश्यंत्यस्मिन्सादरे तं श्रयंति ।
क्षुद्रा नद्यस्ता नदीस्ताः समुद्रम् ॥ २४ ॥ अर्थ--कुटकीके बीज जिस भूमिमें बोया हो वहांके सर्व तृण सस्य वगैरेह नष्ट होते हैं, उसी प्रकार आदरसहित दानसे जीवके अनंतभवके कर्म भी नष्ट होते हैं। जिस प्रकार छोटी नदियां बडी नदीयोंको, बडी नदियां समुद्रको जा मिलती हैं इसी प्रकार सभी पात्र ष अन्य मनुष्य उस दानीके आश्रयमें आते हैं ॥ २४ ॥
सस्या विनश्यति यदाश्रितानि पद्माकर निर्जलमाश्रिताश्च ॥ अनादरं दातृजनं च भूपं भक्तास्तथा साधुजना प्रजाश्च ॥२५॥
अर्थ-निर्जल तालाबको आश्रित सस्य जिस प्रकार नष्ट होते हैं उसी प्रकार निरादर करनेवाले दाता, राजा वगैरहका आश्रय लेनेवाले भक्त प्रजा व सज्जन नष्ट होते हैं ॥ २५ ॥
दानके पांच दोष. अनादरी विलंबश्च वैमुख्यं चाप्रियं वचः।
पश्चाद्भवति संतापी दानदूषणपंचकम् ॥ २६ ॥ - अर्थ-पात्रके प्रति निरादर करना, देरीसे दान देना, मुनियोंको देखकर भी नहीं देखासा करना, हितमितमधुर-वचन नहीं बोलना, दान देने के बाद पश्चात्ताप करना थे पांच दानके लिए दूषण हैं ॥२६॥