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दानशासमम्
समय वह दंश करनेके लिए उधुक्त होकर जिसने अपना मुख फाडा है ऐसे पागल कुत्तेके समान दिखता है ॥ ६१ ॥ .
झंझावाते जाते पतिते करकोच्चये रसालानाम् । प्रपतन्ति फलानि यथा केचिच्च महान्तरायवन्तः स्युः ॥६२॥
अर्थ-विशिष्ट आंधी चलनेपर जिस प्रकार वृक्षसे आम्रफलादि पतित होते हैं उसी प्रकार कोई २ सज्जनोंको अकस्मात. कर्मवश महा अंतराय उपस्थित होता है ॥ ६२ ॥ स्वामिद्रोही योऽहंदापहर्ता दातुः शक्ति योऽप्यविज्ञाय भोक्ता । भोज भोज तद्गृहस्यापकर्ता सोऽयं क्षिप्रं याति पापं दरिद्रम्॥६३॥
.. अर्थः-जो व्यक्ति स्वामिद्रोही है, देवद्रव्यको अपहरण करनेवाला है, दाताकी शक्तिको न जानकर ही उससे लाभ उठाना चाहता है, किसी घरका रोज रोज खाकर भी उसको अपकार करता है, वह , व्यक्ति शीघ्र ही तीव्रपापको संचय करता है । एवं उसके फलसे दरि. द्रताको प्राप्त करता है ॥ ६३ ॥
जारान् ये तर्पयन्त्यर्थै स्तेषां जन्मान्तरेऽत्र च । सर्वे दृग्गोचराः कान्ता वश्याः स्युः स्वांगना इव ॥६४ ॥
अर्थ-जार पुरुषको धन देकर जो खुष करते हैं उनकी स्त्रियां इस जन्म में तथा परजन्म में मानो जार पुरुष की ही स्त्रियां हैं इस प्रकार उन के वश होती हैं । अर्थात् जार पुरुषको दान देना उसका आदर करना वगैरह कार्य करने से अपने वंशकी शुद्धि नष्ट होती है अतः जारादिक दुराचारियोंको दानादिक नहीं देना चाहिये ॥६॥ तरण्डमापूरितसर्वमानवं नदीतटं तारयति प्रकुप्यति । तदन्तरस्थानिह सर्वमानवान् शपत्यमी तिष्ठ यथा स मौनिनः ।।
अर्थ-जिस में लोक बैठे हैं ऐसी नावको नाविक नदीके किनारे लगाता है । परंतु उसको यदि लोग गाली देकर कुपित करेंगे तो यह