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दानशासनम्
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अर्थ-जिस प्रकार कौवे जानवरोंके शरीर पर जखम देखकर उसे खोदने लगते हैं, खाते हैं । उसी प्रकार कोई २ जीव दूसरोंके दुःखकी अवस्थामें भी उनके मर्मस्थलको भेदते हैं ॥३९॥
__ कोई मनुष्योंका नाश करते हैं कारयन्ति स्वयं पापं केचिदाश्रित्य भूपतीन् । नाशयन्ति जनान् राज्ये छकाः खगमृगान्यथा ॥ ४० ॥ अर्थ-कोई २ सज्जन राजाके आश्रयसे स्वयं पाप करते हैं, एवं दूसरोंसे पाप कराते हैं, जैसे कोई मनुष्य पाले हुए चतुर पशु, पक्षीके द्वारा दुसरे पशु, पक्षीको पकडते हैं ॥ ४० ॥
कोई तृणके तुल्य होते हैं. वर्षाकाले प्रवर्धन्ते ग्रीष्मे नश्यन्ति च स्वयम् ।
वृष्टयुत्पन्नतृणानीव केचिज्जीवन्ति सर्वथा ॥ ४१ ॥ अर्थ-जिस प्रकार कोई घास बरसातमें उत्पन्न होते हैं एवं गरमीमें नष्ट होते हैं, इसी प्रकार कोई २ जीवों की हालत है । परंतु कोई २ बरसातमें उत्पन्न हुए घास सदा ही जीते हैं । उसी प्रकार किन्ही २ जीवोंका परिणाम होता है ॥ ४१ ॥
स्पृष्टा यथा गाः सकलाश्च भद्रास्तुष्टा मनस्येव भवन्ति वृद्धाः । - सुरा इवामी ललनाः समीक्ष्य
स्पृष्ट्वा तथाहादितमानसाः स्युः ॥ ४२ ॥ अर्थ-जिस प्रकार अच्छी वृद्ध गायें बैलोंको स्पर्श करने मात्रसे मनमे ही संतुष्ट होती हैं, इसी प्रकार कोई २ अच्छी स्त्रियां अपने पति को देखकर व स्पर्शकर मनमें संतुष्ट होती हैं ॥ ४२ ॥
बलात्कारसे परस्त्री गमन करते हैं. हठादाक्रमितुं गाश्च धावन्ति वृषभा यथा ॥ मसान्याङ्गना केचिदगीकुर्वन्ति मानवाः ॥ ४३ ॥