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પ
दानशासनम्
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लिए लोगों को इष्ट ऐसे भी सर्व फलों को गिराते रहते हैं, उसी प्रकार इस संसार में कितने ही सज्जन पुण्यका नाश करते हैं कोई सिंहके तुल्य पाप कमा लेते हैं.
गजो हतः केसरिणात्मनोऽयं भवेददन्तीव च जम्बुकाद्याः ॥ वृथा क्रुधैकः प्रहतस्तदर्थानन्ये हरन्त्यात्मन एव पापम् ||३२||
अर्थ -- सिंह क्रोध से हाथीको मारता है, परंतु उसका मांस शृगाल वगैरे प्राणी भक्षण करते हैं। सिंह गजवध के पापसे लिप्त होता है । इसीप्रकार कोई पुरुष क्रोधसे किसीको मारता है और उस के धनादिक अन्य लोग उठा लेते हैं । हरण करते हैं । मारने वालेको केवल पाप की ही प्राप्ति होती है ॥ ३२ ॥
कोई संकेतादिसे प्रणाम करते हैं. सङ्केताङ्गसंस्पृष्ट्या बधिराः शयिता यथा । प्रणमन्ति समङ्गाय नमन्ति कतिचित्तथा ॥ ३३ ॥
अर्थ - कितने ही बहरे संकेत, अंगस्पर्शन आदि से शयनादि क्रिया करते हैं । उसीप्रकार इस संसार में अनेक व्यक्ति संकेतादिसे ही प्रणाम वंदना आदि क्रिया करते हैं ||३३||
कोई बिल्ली के तुल्य हिंसातुर होते हैं. स्थित्वा ध्यायन्ति माजरा वृषाविष्टबिलान्तिके । एकाग्रचिन्तया केचिद्यथा हिंसातुरास्तथा || ३४॥
अर्थ- जैसे बिल्ली चूहे के बिलके बाहर बैठकर ध्यान करती है, उसी प्रकार इस संसार में कोई एकाग्रचितांसे ध्यान करते हुए हिंसातुर रहते हैं ॥ ३४ ॥
कोई हिंसा नंदी होते हैं. मार्जारनकुलश्वाला दृश्यान्पश्यन्त्यइर्निशम् । यथा हिंसानंदिजनो व्यनक्ति सुकृतहास || ३५॥