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दानशासनम्
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पृष्ठ श्लोक ६२४. किसी की नीचसंगतिसे धर्मधारण की इच्छा नष्ट होती है
३१९ ५२ ६२५ मिथ्यादृष्टिमें द्रव्यदान, भक्ति आदि से दर्शन, पुण्य नष्ट होते हैं
३१९ ५३ ६२६ कहीं २ आमकुंभके तुल्य धर्म नहीं ठहरता है ३१९ ५४ ६२७ योग्यस्थानको देखकर पुण्यबीजका वपन करें ३१९ . ५५ ६२८ अकार्यसे पाप बंध होता है ६२९ पापकर पुण्य
३२०. ५७ ६३० पुण्यकर पाप
३२१५८.५९ ६३१ पापकर पुण्य
३२१ ६. ६३२ कोई पागल कुत्ते के सदृश होते हैं ६२१ ६१ ६३३ कोई अंतराय करनेवाले होते हैं । ३२२ ६२ ६३४ स्वामिद्रोहादिसे पापसंचय होता है ३२२ ६३ ६१५ जारादिकोंको दानादिक का निषेध ३२२ ६४ ६३६ दाता की निंदा नहीं करें
३२२ ६५ ६३७ द्रव्यको सत्पात्रमें देनेका उपदेश ६३८ परिग्रहसे मन सदा चंचल होता है ३२३ ६७ ६३९ पुण्यप्रभाव से विघ्न नष्ट होते हैं । ३२४ ६८ ६४० दर्शनचारित्ररहितज्ञान
३२४६९.७० ६४१ गुरुवोंकी अनुमति के विना चारित्रपालन
३२४-३२५ ७१-७२ ६४२ व्यर्थ अर्थ
१२५ ७३ ६४३ विवेकीको पापचोर स्पर्श नहीं करते ३२५ ७४ ६४४ सम्यग्दृष्टिको दोन समझकर याचक छोड देते हैं ३२६ ७५ ६४५ परिप्रहरक्षणतत्पर सदा अस्वस्थ रहता है ३२६ . ७६
निषेध