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________________ शास्त्रदानविचार AN अर्थ-जो सज्जन शास्त्रोंको स्वयं या दूसरोंके द्वारा जलाते हैं वे उसीप्रकारके कर्मको अनुभव करते हैं, एवं उनका ज्ञान, दर्शन, व पुण्यका नाश होता है ॥ ३६ ॥ गुरुवोंके आविनयका फल . शाम्राणां पठने श्रुतौ पटुतरा बुद्धिमुनीनां सतां । तान्दृष्ट्वा विनयोक्तिभक्तिविनतिर्द्रव्यैर्मुदं ये मुदा ॥ नो कुर्वति न कारयति तनुवाक्चित्तैरलं वंचकाः । षण्मासावधि भूरिवित्तलयनं तेषां भवेदज्ञता ॥ ३७ ॥ अर्थ---शास्त्रस्वाध्याय जहां चला है वहां, जहां शास्त्र सुनरहे हैं वहां, एवं निर्मलबुद्धि के धारक साधुवोंके पासमें जानेके बाद वहां, जो उनको देखकर विनयपूर्ण वचन, भक्ति, विनय आदि नहीं करते हैं, एवं अपने द्रव्यसे व मन, वचन, कायकी विशुद्धि से उनका सत्कार नहीं करते हैं, और दूसरोंसे नहीं कराते हैं वे वंचक हैं । उनको उनके पापके फलके रूपमें छह महीनेके अंदर उनके धनका नाश होता है एवं उनका ज्ञान मंद होता है एवं वे विवेकभ्रष्ट होते हैं ॥ ३७॥ अज्ञानी उल्लू जिनधर्मामलाकाशे उदिते शास्त्रभास्वति । घूका इवांधा नेक्षते सन्मार्ग मोक्षसाधनम् ॥ ३८ ॥ अर्थ-जिनधर्मरूपी निर्मल आकाशमें शास्त्ररूपी सूर्यके उदय होनेपर उल्लूके समान अज्ञानी जीव मोक्षसाधनसमर्थ सन्मार्गको देख नहीं सकते हैं ॥ ३८ ॥ आगमपर मलिनवस्त्राच्छादनफल आगमशास्त्रावासस्योपरि मलिनांवरादिभारारोपः । येन कृतस्तस्य महाज्ञानार्कबिमस्तमेति क्षिपम् ॥ ३९ ॥
SR No.022013
Book TitleDan Shasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovindji Ravji Doshi
Publication Year1941
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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