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औषधदानविचार
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करते हैं, दंड देते हैं, धन अपहरण करते हैं। यह कालकी विचित्रता
मतं समस्तै ऋषिभिर्यदाईतैः प्रभासुरं पावनदानशासनम् । मुदे सतां पुण्यधनं समर्जितुं
धनानि दद्यान्मुनये विचार्य तत् ॥ १८॥ अर्थ-समस्त आहेत ऋषियोंके शासन के अनुसार यह दानशासन प्रतिपादित है। इसलिए पुण्यधनको कमाने की इच्छा रखनेवाले दानी श्रावक उत्तम पात्रोंको देखकर उनके संयमोपयोगी धनादिकद्रव्योंको विचार कर दान देवें ॥ १८ ॥
इत्यौषधदानविधानम् ॥
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