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दानफलविचार
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गायकवादकनर्तकमागधपरिहासकादिलोकेभ्यः । सेवार्थ दाता धनमपवादभयेन चार्थिने दद्यात् ॥ १९८ ॥
अर्थ-गानेवाला, बजानेवाला, नर्तन करनेवाला, स्तुति करनेवाला, हास्यकार, याचक, भादियोंको सेवा करनेके उपलक्षमें, लोकमें अपवाद न हो इस भयसे ही धन देना चाहिये । उनको पात्र समझकर दान नहीं देना चाहिये ।। १९८ ॥
प्रमत्तनागाः सृणिशिक्षितास्सदा । सुमंत्रतंत्रानुगता महोरगाः ।
कुधर्मजश्रीमदमत्तमानवाः । ... समंत्रतंत्रैरपि शिक्षिता न च ॥ १९९ ॥ ... अर्थ-मदोन्मत्त हाथियोंको अंकुशसे वशमें कर सकते हैं। काले सर्प भी मंत्रतंत्रोंसे अनुकूल होते हैं । परंतु कुधर्म अर्थात् अपात्रदानादिकके. फलसे उत्पन्नसंपत्तिके मदसे जो मदोन्मत्त हैं उन पुरुषोंको कोई भी मंत्र तंत्रोंसे वशमें नहीं कर सकते हैं॥ १९९ ॥
अनियतकरणान्ये मानवांस्तर्पयंती- । त्यनियतकरणास्ते दुर्विनीता भवेयुः। दुरितकरणशक्ता ध्वस्त पुण्यार्थभक्ता। नियतकरणवृत्ताः पालनीयाः स्ववित्तैः ॥ २० ॥ अर्थ-जो व्यक्ति पंचेंद्रियविषयों में अनियमितवृत्तिके धारक इंद्रिय लोलुपी असंयमियोंका पोषण करते हैं, वे पापार्जनमें सहायता पहुंचाते हैं । इंद्रियलोलुपी व असंयमी स्वेच्छाचारी व अष्टकर्मोके अर्जन करने में समर्थ होते हैं । एवं पुण्य व पुण्यात्मावोंको कष्ट भी देते हैं। इसलिए हमेशा नियतकरण-वृत्तिवाले अर्थात् इंद्रियदमन करनेवाल संयमियोंका ही अपने द्रव्यसे पोषण करना चाहिये ॥ २००..॥