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दानशासनम्
देखनपर फलकी निश्चिति, सातिशय संपत्ति, कलानैपुण्य आदि बातें जिन व्यक्तियो में पाई जाय वे स्वर्गसे च्युत होकर आये हैं ऐसा समझना चाहिये । अर्थात् स्वर्गच्युत जीवोंके ये लक्षण हैं । ॥ १४० ॥ १४१ ॥ *
दातावोंका परिणाम दाक्षिण्यादपवादतः शकुनतो यंत्रात्सुमंत्रौषधाचाटूक्तः परिचर्यतोऽनुतपनान्मानादुदासीनतः । आलस्यादुपरोधवर्णनयशोदुष्पक्षपाताज्जनाः खेदात्मश्ननिमित्ततश्च ददत पात्राय दानानि ते ॥१४२॥
अर्थ- लोकमें अमेक प्रकारके दाता रहते हैं । परिणाम शुद्ध रखकर केवल पुण्यार्जन करने के लिए दान देनेवाले बहुत दुर्लभ हैं। कोई पात्रों के वचन उल्लंबन न कर सकने की लिहाजसे दान देते हैं । कोई दूसरोंके अपवाद के भयसे दान देते हैं, कोई शकुनके निमित्तसे तो कोई मंत्र यंत्राराधनाके निमित्त, कोई प्रियवचन के निमित्तसे, कोई सेवाको अपेक्षासे, कोई मानसे, कोई औदासीन्यभावसे, कोई आलस्यसे, कोई दूसरोंके दबावसे, कोई मिथ्यापक्षपातसे, कोई बडे दानियोंकी श्रेणीमें नाम लिखानेके लिए अर्थात् ख्यातिकी अपेक्षासे और कोई मनमें दुःखी होते हुए दान देते हैं । इस प्रकार अनेक प्रकारके अभिप्रायोंको रखकर दान देते हैं ॥ १४२ ॥
* अनुलोमो विनीतश्च दयादानरुचिम॒दुः । प्रहसो मध्यमो बस्स मानुष्यादागतो नरः॥ बह्वाशी नैव संतुष्टो मायावी च क्षुधाधिकः । म्वप्नमूढोऽलसश्चैव तिर्यग्योन्यागतो नरः ।। विरुद्धता बंधुजनेषु नित्यं सरोगता मूर्खजनेषु संगः || भतीव रोषः काका च वाणी नरस्य चिन्हं नरकागतस्य ॥