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दानफलविचार
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अर्थ-जिस प्रकार भक्तिमान् सेवक अपने स्वामीके द्वारा नियुक्त सभी सेवावोंको बहुत भक्ति व संतोषसे करता है उसी प्रकार दाताका शरीर भी हो, वह सदा गुरुसेवामें प्रवृत्त हो ॥ १११ ॥
तामसदान ... + पात्रापात्रसमज्ञताज्ञ इह हेमादेः परीक्षाविधावाहूयानुचरैरसंस्तुतमसत्कारं स पात्रं च यः । दास्या पाचितदापितं भृतिधरैर्यदापितं चाहतं तदान न फलं तु भाटकचितं तत्तामसाख्यं विदुः॥११२॥ अर्थ-जिस प्रकार सुवर्णकी परीक्षा न जाननेवाला अज्ञानी परीक्षा करनेमें असमर्थ रहता है, उसी प्रकार पात्रापात्रके भेदको न समझनेवाला अज्ञानी अपने नौकरोंके द्वारा उन पात्रोंको अपने घरपर बुलवाकर स्तुतिस्तोत्र व नवधाभक्ति आदिसे रहित होकर, दासी के द्वारा तैयार किये गए आहार को अपने नौकरोंके द्वारा दिलाता है, उस दानका कोई फल नहीं है । वह तो भाडोत्री मनुष्योंको रखकर कमाये हुए धनके समान भाडोत्री दान है, उसे महर्षिगण तामसदान कहते हैं ॥ ११२ ॥
यः शयानो न संतिष्ठेन्नोत्तिष्ठन्सस्थितोऽपि न ।
अनुत्थितः पात्रमीक्षन्स दाता गर्वितो यथा ॥ ११३ ॥ अर्थ तामस दानी दाता गर्विष्ठ मनुष्यके समान पात्रोंके आग.: + सुखी दुख न सहते दुःखी दुःखं सुखं सदा
यथा ताडनमुष्टोयं सहते कंटकाशनः ॥ धार्मिका यदि वर्तते धर्मवित्तेषु वंचकाः ॥ तत्रस्थाधार्मिका धर्म बहुव्याजाल्लयांत च ।। पात्रापात्रासमावेक्ष्यमसत्कारमसंस्तुत ॥ दासभृत्यकृतोद्योगं दानं तामसमूचिरे॥