________________
दानफलविचार
२१७
अर्थ-जिस प्रकार वीर राजा अपने नगरको घेरे हुए शत्रुराजा व उसकी सेनाके योद्धावोंको गाली नहीं दिया करता है, उलटा उनकी. वीरताको देखकर प्रशंसा करता है, उसी प्रकार सबको अपने आत्माको न्यायवृत्तिकी ओर लेजाना चाहिये । परंतु आश्चर्य है कि मूर्ख लोग रात्रिंदिन दूसरे बंधुओंको गाली वगैरह देकर दुर्वचन कहते हैं । परन्तु बुद्धिमानोंको उचित है कि जिस प्रकार मुनिराजके मार्गमें जाते समय दोनों ओरसे मोटे ताजे कुत्तोंके भोंकने पर भी वे मौन धारण करते हुए जाते हैं, उसी प्रकार बडे पुरुषोंको ऐसी गालियों की उपेक्षा करनी चाहिये ॥ १०६ ॥
कुत्ते के समान कृतज्ञ रहो जीवासीत स * रात्रिजागर इव स्वस्वामिसमाप्यवंस्तस्मिन्कुप्यति मौनवानिह भवान् स्वस्वामिभक्तो यथा। घाते तेन भषन्न तत्र न दशन् कुप्यन् कृतज्ञो यथा
भक्तः स्वामिनि जागरोऽवतिमिरे भूत्वा कृतज्ञो वृषे ॥१०७ अर्थ-हे सुखार्थी जीव ! तू कुत्तेके समान कृतज्ञ बनना सीख ! जिस प्रकार वह कुत्ता अपने स्वामीके सुखसे निद्रित होनेके बाद स्वयं जागरण करते हुए अपने मालिकके ही नहीं अडोस-पडोसके घरको भी संरक्षण करता है। स्वामी यदि उसपर क्रुद्ध हुआ तो वह मौनधारण कर लेता है, इतना ही नहीं यदि स्वामीने उसे मारा तो भी अपने स्वामीको काटता नहीं, भोंकता भी नहीं, सदा स्वामिभक्त ही बना रहता है। इसी प्रकार पापांधकाररूपी रात्रिके होते हुए धर्म व धर्मगुरुरूपी स्वामीके प्रति हे जीव ! तू कृतज्ञ बनना सीखो । तभी तुह्मारा कल्याण होगा॥१०७॥
* जागर्ति स्वामिवर्गेऽस्मिन् निद्रितो मौनवान्भवेत् निद्रिते तत्र जाग्रस रात्रिजागर इष्यते ॥