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दानशासनम्
अर्थ-लोकमें देखा जाता है कि पापियोंका जीवन दीर्घ हुआ करता है, पुण्यात्मा लोग अल्पजीवी होते हैं । इसका क्या कारण है। प्रकृति ही ऐसी है। लोको केलेका वृक्ष व एक जमीकंद इस प्रकार दोनोंका बीज बोनेपर केलके वृक्षको देशकालोचित अनेक क्रियाओं के करनेपर भी फल कम देता है । परंतु थोडीसी क्रिया करनेपर भी कंद अधिक फल देता है। इसी प्रकार पापियोंका जीवन अधिक होता है, पुण्यात्माओंका जीवन अल्प होता है ॥ ९६ ॥
उपकार्यपात्र स्वशामित्रकृतोपकारविधिना भृत्यांगनानां भयं । सद्यस्तत्पतिना भवेदिव सदा तत्कर्म संवर्जयेत् ॥ पुष्यात्पात्रसुबंधुसेवकसतीपुत्रादिकान्प्रीतितो । . नित्यं नान्यजनाय धर्मनिपुणैर्दानं च देयं वृषात् ॥९७॥ अर्थ-लोकमें देखा जाता है कि अपने स्वामीके शत्रुओंको किसी सेवकने उपकार किया तो उससे स्वामी क्रोधित होकर अनेक प्रकारसे हानि कर सकता है । इस प्रकार का भय उन सेवकोंको व उनकी स्त्रियोंको सदा रहता है । इसलिए ऐसे कार्यको कभी नहीं करना चाहिए। बुद्धिमानोंको उचित है कि सत्पात्र, अपने उत्तम बंधु, सेवक, अनाथ स्त्रियां, बालक आदिका अपने धनसे पोषण करें। अन्य जनोंको देने की जरूरत नहीं ॥ ९७ ॥
. भक्तिफल किं दुष्टाः पुरि सावधौ तलवरे दोषान्यथा कुर्वते । पुष्टियन बले यदीयमहसा लोकेषु नो वैरिणः ॥ क्रूरावांतरिताः प्रणश्यति तमः सूर्ये निरभ्रे यथा । भक्तिधर्मर ले जने गुरुजने यस्यास्त्यघं तस्य न ॥९८॥
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