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दानशासनम्
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संसाररूपी समुद्रसे पार होनेके लिए वह सेतु है । कर्मरूपी पर्वतके लिए वज्रदण्ड है। उस क्षमावान महापुरुषको अपने चित्तमें स्थापना कर मनुष्य सदा हर्षसे स्तुति करते हैं, प्रशंसा करते हैं ॥ १८ ॥
मृदुवचनमाह. एलामाहुरनंगकलिविवृति गायंति यां वीणया । श्रुत्या गानविदः समं नृपसदस्यालापपूर्व बुधाः ॥ सर्वेऽर्थान्बुवतेऽतिचाटुवचनैर्दत्ते स चार्थान्बहून् । श्रुत्वोक्त्वा स निराकरोति च विना यांते दुरालापिनः ॥१९॥
अर्थ-बुद्धिमान लोग राजसभामें कामक्रीडाके विषयको वर्णन करते हैं तो उसे एला ( ? ) नामक सभ्यशब्दसे वर्णन करते हैं।
और गायनको जाननेवाले उसे ही श्रुति आलाप पूर्वक वीणाके साथ गाते हैं जिसे सुनकर राजा प्रसन्न होकर उन्हे प्रशंसा करता है व उन्हे अनेक पदार्थोको भेटमें देता है। परंतु जिनका स्वर अच्छा नहीं है वे यदि गावे तो उसे सुनकर राजा अप्रसन्न होता है। और उन्हे गानेसे रोकता है, और उनको कुछ भी नहीं मिलता। वे खाली हाथसे जाते हैं। इसलिये निष्कर्ष यह निकला कि मृदुस्वर का भी बहुत उपयोग होता है ॥ १९॥
शक्तिमाह. ये जीमंति रुचेष्टवस्तु खलु यदाता च तदापय - । न्यद्वांचंति तदेव नास्ति च वचोऽवक्ता न वाचा हृदा ॥ कायेनापि मनो मुदा दद ददेदं वस्त्विदं संवदन् ।
शक्तःसोऽपि महान्बुधोऽतिसुकृती स्यादानशौण्डोऽनघः ।। अर्थः - श्रावकको उचित है कि वह पात्रोंको आहार देते समय पात्रोंकी रुचि, प्रकृति आदि बातोंको जान लें। उसे जानकर उनकी रुचिके