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२९० सम्यग्दृष्टि पुण्यसाधन के अभाव में भी मुक्ति पाते हैं
२९.१ कोई २ स्वतः सम्यग्दृष्टि हो जाते हैं २९२ बहुत से सम्यग्दर्शनसे च्युत हो जाते हैं २९३ भावभेद से सम्यग्दर्शन के असंख्यात भेद हो जाते हैं
२९४ निर्दोष सम्यदृष्टि - मोक्षको प्राप्त करते हैं। २९५ क्रोध सम्यग्दर्शनको नष्ट कर देता है। २९६ संसार महायज्ञ के समान है २९७ क्रोधका अनिष्टफल
गान
२९८ प्राचीन और आर्वाचीन जैनोंमें अंतर २९९ क्रोध अश्वत्थ आदि के समान पुण्यनाश
करता है
३०० स्त्रीविडम्बनमाह
३०१ मध्यमपात्र
३०२ भव्यलक्षण ३०३ भव्योंका कर्तव्य
१०४ जघन्यपात्र
३०५ मुनियोंके पांचभेद
३० ६ परस्त्रीगृहप्रवेशनिषेध
३०७ मध्यमपात्र
३०८ जघन्यपात्र
३०९ अपात्रवर्णन
३१० कुपात्रवर्णन
३११ पुनः तीन प्रकार के पात्रोंका वर्णन
पृष्ठ
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ठोक
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१५५-५८७६-८१
१५८-६१८२-८८
१६१-६२ ८९-९२
१६३ ९३
१६३ ९४
१६४
९५
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१६४
९७
१६५ ९८.९९
१६५-६६ १००-१०१
१६६-६७ १०२-१०५
१६७१०६-१०८
१६८ १०९