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पात्रभेदाधिकारः
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अर्थ-वे केलेके फल उत्पन्न होनेके समयमें अधोमुखी होते हैं व बादमें ऊर्ध्वमुखी होते हैं उसी प्रकार कोई २ सम्यग्दृष्टियोंको पुण्य कमानेका कोई साधन नहीं रहनेपर भी बादमें वह अष्टकर्मीको नाश करते हैं ॥ ६७ ॥
स्वयं फलानि पकानि तस्याः परिणतौ यथा ।
तथा च गौतमस्वामी भवेत्कश्चित्सुदृक्पुमान् ॥ ६८ ॥ अर्थ-समय आनेपर केलेके फल जिस प्रकार अपने आप पकते हैं उसी प्रकार कोई २ समय आनेपर गौतमस्वामीके समान सम्यग्दृष्टि बनते है॥ ६८॥ __ रंभाफलगुलुंछेऽस्मिन्नल्पान्यूर्ध्वमुखानि च ।
बहून्यधः पतनीव केचिज्जीवा व्रजेत्युभे ॥ ६९ ॥ अर्थ-केलेके गुच्छमें जिस प्रकार कुछ केले तो ऊर्ध्वमुख और बहुतसे अधोमुखवाले होते हैं, इसी प्रकार बहुत संख्यामें सुदृष्टि सम्यग्दर्शनसे च्युत होते हैं ॥ ६९ ॥
पाटल्यंघ्रिषु यत्र यत्र बहवो भंगा भवत्यकुरा । जायंते यदि तत्र तत्र बहलास्ते स्युर्महापादपाः ॥ केषां दृक्च यथा तथैव बहुधा विघ्नान्विता चेत्तदा । सा दृक् नित्यमुखं ददास्यलमसंख्यातात्मिका स्याद्धवं ॥७०॥
अर्थ-जिस प्रकार पाटलीवृक्षमें किसी कारणसे भंग हो जाय, जहां २ भंग है वहां अंकुरोत्पादन होकर बहुतसे वृक्ष उत्पन्न होते हैं। उसी प्रकार किसी २ सम्यग्दृष्टिको यदि उनके भावोंको बिगाडने वाले अनेक विघ्न उपस्थित हो जाय तो वह सम्यग्दर्शन उसके भावोंके भेदसे असंख्यात प्रकारसे विभक्त होता है ॥ ७० ॥ |. सर्वागम्यशिलोच्चयोत्थतरवः संवृद्धिभाजो यथा ॥ | निर्भगा बहुनिझराईवरणाः शुद्धाशया निर्मदाः ।।
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