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द्रव्यलक्षण
निषिद्धाहारदत्तफल. स्वेशपुत्रादिभुक्तान्नशेष दत्ते तपोभृते । ।
अपुत्रा स्यात्सपुत्रा चेत्ते स्युर्जीवन्मृताः सुताः ॥ १० ॥ अर्थ-मुनियोंको आहार देनेके पहिले अपने पति, पुत्र, भाई बंधु आदिको भोजन कराकर फिर बचा हुआ आहार यदि मुनियोंको आहारदानमें देखें तो उस स्त्रीको अत्यधिक पाप लगता है जिसके फलसे वह अपुत्रा होती है । कदाचित् पहिलेसे उसको पुत्र हो तो वे . जीवन्मृत होते हैं अर्थात् पागल, मूर्ख, बधिर, अंधा, मूक वगैरह होते हैं ॥१०॥
अवतिकदत्ताहारफल. अतिकदत्तभुक्तिः सत्तभंगं च पुण्यभंग च । .
दास्या दत्ता कुर्यादातुः पुण्यस्य सद्गते गं ॥ ११ ॥ ' अर्थ--दर्शनचारित्रसे रहित अवतिके द्वारा दिया हुआ अहार व्रतभंग और पुण्यभंगके लिये कारण है । एवं दासीके द्वारा दिलाया हुआ आहार भी दाताके पुण्य व सद्गतीका भंग करता है अर्थात् इससे पापसंचय होता है ॥ ११ ॥
. निषिद्धाहार. जीवेनांगेन कायेना- शुचिना वर्तनेन च ।
भवेदधमया चेट्या स्पृष्टमन्नं विगर्हितं ॥ १२ ॥ अर्थ-हिंसकप्राणियोंको स्पर्श कर दिया हुआ आहार, अस्पृ. श्यादिककी छायासे स्पृष्ट होकर दिया हुआ आहार, नीचकार्य कर :- अपवित्र दशामें दिया हुआ आहार, और नीच दासीके द्वारा स्पृष्ट । आहार मुनियोंको दानमें देने के लिये निषिद्ध है ॥ १२॥
. दासिपक्व आहार. क्षीरेम्ळं विषमन्ने स्वर्णादौयोजयनिव । दास्या दापायितुर्दानं दोषायैव प्रजायते ॥ १३ ॥