________________
दानशाला लक्षण
भी शुद्धि कर दान देवें तो वह दाता सुखी होता है ॥ १८ ॥ स्नाता धौतशिखाः सुधौतदशनाः पुत्रादिलोकास्पृशो - । गोविट्पूतगृहेऽनिवेशितजने प्रत्यग्रभाण्डादिभिः ॥ पक्कैर्मूढजना बहुप्रयतना वाजैश्चतुर्भिर्मुदा । स्वान्देवानिव पूजयंति बहुधोत्साहैर्मुनीन्धार्मिकाः ॥१९॥
1
अर्थ - धार्मिक जन प्रतिनित्य दंतधावन करके, आमस्तक स्नान करें । तदनंतर पुत्र आदि विना स्नान किये लोगों का स्पर्श न करें । अपने घर के अंगणकी गोमयसे पवित्र करें एवं उसमें इतर अस्पृश्यादि लोगों का प्रवेश नहीं होने देवें । और पूर्वोक्त प्रकार संस्कृत रसोई घरमें संस्कृत पात्रोंसे तैयार किये हुए भोजनको अनेक प्रकारके उत्साहले मुनियोंको अर्पण करें । इतना ही नहीं, जिस प्रकार वह अपने देवोंकी उपासना व भक्ति करता है उसी प्रकार मुनियोंके प्रति भी भक्ति करें ॥ १९ ॥
साधुपादरजाकीर्णे शुचि यह मंगणं ॥
ग्रहादिवन्हिकीटायाः प्रविशति न तद्गृहम् ॥ २० ॥
१११
-
अर्थ – साधुवोंके पादधूलसे जिस घरका अंगण पवित्र होगया हो, उस घरमें भूतपिशाचादि दुष्ट ग्रहोंका प्रवेश नहीं होता है, सर्वादिक विषैले जंतु वहां नहीं आते हैं एवं अग्नि, चोर आदिका उपद्रव नहीं होता है । और न घरमें कीडे आदि क्षुद्र जंतुवोंकी हो बाधा होती है ॥ २० ॥
1
पुण्यपुत्राः प्रजायंते तत्र श्रीरेधते सदा ॥
द्रव्यं गृहागतं पुण्यं भूरि भूत्वा प्रवर्धते ॥ २१ ॥
अर्थ - जिस घर में मुनियोंका पदार्पण हुआ हो उसमें पुण्यपुत्र अर्थात् कुलकी कीर्ति बढानेवाले पुत्र उत्पन्न होते हैं । एवं उस घर में