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दानशासनम्
दानशालालक्षण. प्रप्रणम्य जिनं भक्त्या संसंश्रुत्य गुरोर्वचः। निर्दोषपुण्यदं दानशाला लक्षणमुच्यते ॥ १॥ अर्थ-श्रीभगवान् जिनेंद्रको भावशुद्धिसे नमस्कार कर एवं मन वचन कायकी शुद्धिसे सद्गुरुवोंके उपदेश सुनकर, अब आगे निर्दोष व पुण्यप्रद दानशालाका स्वरूप कहेंगे इस प्रकार आचार्य प्रतिज्ञा करते हैं ॥ १ ॥
नवीन गृहसंस्कार गोमय चूर्णविलिप्तं शुद्धं पुण्याहवाचनाहोमाभ्याम् ।
सिक्तगंधांबुनव्यं गेहं मुनिभोजनाय योग्यं स्यात् ॥ २॥ ___ अर्थ-जो मकान पहिले चूना व गोबर से अच्छीतरह लिप्त हो, तदनंतर पुण्याहवाचना होम आदि संस्कारके द्वारा शुद्ध करके गंधोदक से सिक्त हो, ऐसा नवीन गृह मुनिभोजन के लिये योग्य है ॥२॥
पुराणगृहसंस्कार प्रत्ने समनि मृतकौकसि कुदृक्शूद्राश्रयेऽद्यान्न चे- । गोवत्सैर्वतिकोपि गोमयपयःसंसिक्तभित्तिच्छदिः ।। होमेनापि सुगंधतोयविमलं गोविट्पवित्रांगणं ।
तत्राईत्पदसेवकः सुदृगयं भुंजीत योगीश्वरः ॥३॥ अर्थ-सूतकी, चाण्डाल, मिथ्यादृष्टि व शूद्रोंका निवास जिसमें होगया हो ऐसे पुराने मकानमें भी विना शुद्ध किये व्रतिक व महाबति‘योंको भोजन नहीं लेना चाहिये । सबफे पहिले गोबरके पानीसे दीवाल कौरको गीलाकर लीपना चाहिये । फिर पुण्याहवाचनापूर्वक होम करके निर्मल गंधोदकका सेचन करना चाहिये एवं बाहरके अंग
पास्तुविधि, विमानशुद्धि.
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