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दानशासनम्
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पृष्ठ श्लोक ११६ देव व गुरुकी सेवाका उपदेश ११७ निर्दयी पापबंध करता है ११८ धर्मके अनुकूल परिग्रहकी रक्षा करनेका उपदेश ५७ ९० ११९ पुरदेशादिको अपने अनुकूल बनानेका उपदेश ५७ ९१ १२० पापोपार्जित द्रव्य वर्जनीय है ५७-५८ ९२-९३ १२१ प्रकारांतरसे अभयदान १२२ भूपशब्दकी निरुक्ति
५९ ९५ १२३ राजाका कर्तव्य
५९९६-९७ १२४ पुण्यहीन राजाको सज्जन धिक्कारते हैं ५९ ९८ १२५ राजासे अभयदानके लिए प्रेरणा करें . ६. ९९ १२६ धर्मद्रोहीके घरमें शुभ क्रियायें व लक्ष्मी
प्रवेश नहीं करती हैं ६० १०० १२७ पापीमें बन्ध्याके समान शुभाचरण उत्पन्न नहीं होते हैं ६१ १०१ १२८ पुण्यपाप कर्मीकी महिमा
६१ १०२ १२९ अपने पिता स्वामी आदिकी निंदा न करें ६१ १०३ १३० तीर्थंकर गुरु आदिके निंदा करनेसे दुर्गति
प्राप्त होती है ६२ १०४ १३१ मत्सरी राजाका जीवन संकटापन्न होताहै ६२ १३२ राज्यमें ब्रह्महत्यादिके रोकनेका उपदेश ६२ १०६ १३३ वाघध्वनिके समान द्रव्य शुभाशुभ सूचक है ६३ १०७ १३४ याचकोंको सन्तोषपूर्वक धन देखें ६३ १०८ १३५ शरणागत वीर आदियोंको धिक्कारनेवाला राजा पापी है
६३ १०.९ १३६ अभयदानमें विघ्न डालनेका फल दुःखदायक है ६४ ११० १३७ प्राण जानेपर भी धर्मको हानि नहीं पहुंचाने ६४ १११
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