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दानशासनम्
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डेगी । एवं धर्मकार्यमें विघ्न आनेपर, धार्मिक मार्ग में संकटके उपस्थित होनेपर चुप रहेगा तो उसका तीन वर्षके अंदर सर्वनाश होजायगा । राज्य नगर देशके समान धर्मकी रक्षा करना भी राजाका धर्म है ।। ११३॥
हत्वा धर्ममहोत्सवं जिनपतषिवं च चैत्यालयं, । पश्चात्कारयतीह तं च तदमुं यो राक्रुधस्तस्य च ॥ नो देशाधिपता भवेपितृमृतिः पुत्रस्य वर्षनयात् । निर्विघ्नं नियमेन .सा भुवि ततः षड्वत्सराभ्यंतरे ॥११४ अर्थ-जो राजा क्रोधित होकर जिनधर्मप्रभावनाके कार्य में विघ्न डालता है, एवं जिनमंदिर, जिनबिंब आदि विनाश करता है एवं फिर उस मंदिरको बंधवाकर बिंबप्रतिष्ठा करता है वह तीन वर्षके बाद राज्यच्युत होता है । एवं च तीन वर्षके बाद उसका मरण भी होगा। परंतु उसने पुनः जिनमंदिरादि बांधकर धर्मप्रभावना की जिस से उसके पुत्र छह वर्षके अंदर पुनः उस राज्यको प्राप्त करलेगा ॥
यत्र यत्र जिनविभंजनं यः करोति खलु तस्य हानयः ॥ तत्र तत्र मरणे महाव्रणाः संभवन्ति क्रिमिदुष्टगंधिनः ।
अर्थ--जो कोई मनुष्य जहां जहां जिनप्रतिमाका नाश करता है वहां मरणके समय जिनबिंब नष्ट करनेवालेके शरीर में दुर्गंध कृमि उत्पन्न होंगे ॥ ११५ ॥
जिनधर्मोत्सवमंदिरबिंबहतेरेव भूपतेः सा लक्ष्मीः । . धावति नश्यति नगरं मरणं वर्षत्रयांतरे स्यादरिणा ११६
अर्थ-जिनधर्मोत्सव, मंदिर, जिनबिंब,इनके नष्ट करनेसे राजाकी लक्ष्मी उसको छोडकर भाग जाती है, उसका नगर नष्ट हो जाता है इतनाही नहीं शत्रुके द्वारा उसका मरण तीन वर्षके अंदर अवश्य होगा ।। ११६ ॥