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________________ छठा गुणस्थान. . (७३) सक दशांग, अन्तगड दशांग, अणुत्तरोववाई दशांग, प्रश्नव्याकरण, विपाक सूत्र और दृष्टिवाद, ये बारह अंग हैं । इन बारह अंगोंमें दृष्टिवाद आज विच्छेद है, इस लिए ग्यारह ही अंग अवशेष हैं। चार अनुयोगोंमें प्रथम चरणकरणानुयोग है, जिसमें आचार कथन किया है, जैसे आचारांग सूत्रादि । दूसरा गणितानुयोग है । गणितानुयोगमें गणित शास्त्र विषय है । जिस तरह सूर्य प्रज्ञप्ति, चन्द्र प्रज्ञप्ति सूत्रादि । तीसरा धर्मकथानुयोग है । धर्मकथानुयोगमें धर्म संबन्धि कथाओंका विषय है, जैसे ज्ञाता, उत्तराध्ययन वगैरह सूत्र । चौथा द्रव्यानुयोग है । द्रव्यानुयोगमें धर्मास्तिकाय अधर्मास्तिकाय वगैरह छः द्रव्योंका स्वरूप कथन किया है। जैसे सूयगडांग सूत्र, ठाणांग सूत्र, पन्नवणा सूत्र वगैरह । पूर्वोक्त ग्यारह अंगोंके उपरान्त बारह उपांग हैं, जिनके नाम यहाँ पर उधृत करते हैं । उववाई, रायपसेणी, जीवाभिगम, पन्नवणा, जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति, चन्द्र प्रज्ञप्ति, सूर्य प्रज्ञप्ति, निरयावली कप्पिया, कप्पवढंसिया, पुफिया, पुप्फचूलिया, वह्निदशा, एवं ग्यारह अंग और बारह उपांग तथा अन्य भी बहुत से प्रकीर्ण ग्रंथों द्वारा श्रुत ज्ञानका विस्तार है। श्रुत ज्ञान अनेक चमत्कारि विद्याओंका भी समुद्र है । श्रुत ज्ञानका विषय अति गहन होनेसे बड़े बड़े विद्वान लोग भी उसका प्रभाव या उसका संपूर्ण वर्णन करनेको असमर्थ हैं । संसारमें घोरातिघोर कर्म करनेवाले प्राणी भी श्रुत ज्ञानरूप तीर्थमें गोते लगा कर पवित्र हो गये हैं। यदि पतित प्राणियोंका उद्धार करनेमें समर्थ है तो केवल यह श्रुत ज्ञान ही है, योगी पुरुषोंका तीसरा नेत्र श्रुत ज्ञान है । इत्यादि अनेक प्रभाओंसे परिपूर्ण श्रुत ज्ञानका अभ्यास करनेमें धर्मध्यानीको लेश मात्र भी प्रमाद न करना चाहिये । धर्मध्यानके ध्याताको १०
SR No.022003
Book TitleGunsthan Kramaroh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijaymuni
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1919
Total Pages222
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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