SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 93
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ७२ ) गुणस्थानक्रमारोह. सर्वज्ञ देवने स्पष्ट तथा कथन कर बताया है, अतः ऐसे अपक्षपाती सर्वज्ञ देवकी आज्ञा हमें अवश्य माननी चाहिये । सर्वज्ञ देवने अपने कैवल्य ज्ञान द्वारा तीन लोकवर्ति पदार्थोंका जैसा स्वरूप देखा है वैसा ही भव्य जीवोंके उपकारार्थ कथन किया है, इस लिए उनके कथन किये हुए सूत्रोंका अर्थ, जीवोंकी मागणा, महाव्रतोंकी भावना, पाँचों इन्द्रियोंके दमन करनेका विचार, दयार्द्र भाव, कर्म बन्धन से मुक्त होनेके उपायोंका विचार, चतुर्मति और सत्तावन हेतुओंकी चिन्तवना, इत्यादिका विचार करनेवाले मनुष्यको शास्त्रकारोंने धर्म ध्यानका ध्याता कहा है। ध्यान करनेवाले को प्रथम सूत्र ज्ञानकी जरूरत है, क्योंकि सूत्र ज्ञान विना आज्ञाविचय नामक धर्म ध्यानके प्रथम पायेका ध्याता नहीं हो सकता । श्रुत ज्ञानका विषय बड़ा गहन और विशाल | है । केवल ज्ञान और श्रुत ज्ञानमें फरक है तो फक्त इतना ही हैं कि केवल ज्ञानका विषय प्रत्यक्ष है और श्रुत ज्ञानका विषय परोक्ष है । केवल ज्ञानी सर्वज्ञ प्रभुने जितने भाव केवल ज्ञान द्वारा साक्षात् तया जाने हैं, उनमेंसे जितना वाणी द्वारा प्रगट किया जाता है, वह सब ही श्रुत ज्ञान कहलाता है । केवल ज्ञानीके कथनसे ही सातवीं नरकके अन्तिम पाथड़ेसे लेकर मोक्ष पर्यन्त चतुर्दश राजलोककी शाश्वती रचनाको छद्मस्थ प्राणी भी जान सकते हैं, यह सर्व श्रुत ज्ञानका ही विषय है। स्वयंभूरमण समुसे भी अधिक गंभीर, लोक तथा अलोकसे विस्तृत, सर्व पदासे भिन्नाभिन्न और करोड़ों ही सूर्योंसे भी अधिक प्रभासमान श्रुत ज्ञान है । यद्यपि कालके महात्म्यसे आज श्रुत ज्ञानका शतांश भाग भी अवशेष नहीं रहा, तथापि श्रुत ज्ञानमें आचारांग, सूयगडांग, ठाणांग, समवायांग, भगवती, ज्ञाताधर्मकथा, उपा
SR No.022003
Book TitleGunsthan Kramaroh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijaymuni
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1919
Total Pages222
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy