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________________ पाँचवाँ गुणस्थान. (४३) तीसरा शिक्षा व्रत पौषध नामक है। संस्कृतमें पुष् धातु पुष्टी करने अर्थमें आता है, उसी पुष् धातुसे यह पौषध शब्द बनता है। जो धर्ममें पुष्टी करे उसे पौषध कहते हैं । पौषध व्रत अष्टमी चतुर्दशी वगैरह पर्वके दिनोंमें पांचवें गुणस्थानवाले मनुष्यको अवश्य ग्रहण करना चाहिये । इस पौषध व्रतके चार भेद होते हैं, तथा उन चारोंमें भी प्रत्येकके दो दो भेद होते हैं । इसका विशेष विवेचन आवश्यक सूत्रकी नियुक्तिवृत्ति तथा चूर्णिकामें लिखा है । आहार पौषध दो प्रकारका इस तरह समझना, एकतो देशसे और दूसरा सर्वसे । अमुक वस्तुका त्याग करना, छः विगयके अन्दरसे कोई एक विगयको त्याग देना या आयंबिल वगैरह प्रत्याख्यान करके एक ही दफा रुक्षानका आहार करना, सो भी सचित्त रहित, या एक आसन पर बैठकर दिनमें एक दफा ही प्रासुक अन्नोदक स्थिरचित्त होकर ग्रहण करना, इसे देशसे आहार पौषध कहते हैं । रात दिन-आठों ही पहर चार प्रकारके आहारका सर्वथा परित्याग करना, इसे सर्वसे आहार पौषध कहते हैं । शरीरसत्कार पौषधके भी दो भेद हैं, अमुक स्नान विलेपनका त्याग करना वह देशसे और सर्वथा स्नान विलेपन-मर्दन तथा पुष्पमाला वगैरह शरीरकी सुश्रूषा संबन्धि वस्तुओंका परित्याग करना, इसे सर्वसे शरीरसत्कार पौषध व्रत कहते हैं । ब्रह्मचर्य पौषध भी पूर्वोक्त रीतीसे दो प्रकारवाला है, रात्रि संबन्धि या दिन संबन्धि मैथुनका त्याग करना इसे देशसे और रात-दिन आठों ही पहर सदाके लिए सर्वथा मैथुनका परित्याग करके त्रिकरण विशुद्धिसे जो ब्रह्मचर्यका परिपालन है, उसे सर्वसे ब्रह्मचर्य पौषध व्रत कहते हैं। अव्यापार पौषध भी इसी तरह समझना, अमुक व्यापारका त्याग करना या अमुक
SR No.022003
Book TitleGunsthan Kramaroh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijaymuni
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1919
Total Pages222
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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