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________________ (३८) गुणस्थानक्रमारोह. आदि ग्रंथोंसे जानलेवे ॥ ___तीसरा गुणव्रत अनर्थडंड विरमण नामक है। शरीर आदिके लिए जो कुछ पापारंभ किया जाता है, उसे अर्थडंड कहते हैं और विना ही प्रयोजन जो पर जीवोंको पीड़ा दी जाती है, उससे जो अपनी आत्मा डंडाती है, उसे अनर्थडंड कहते हैं। .. - उस अनर्थडंडके चार भेद होते हैं, आर्च-रौद्र अपध्यान, पापकर्मका उपदेश, हिंसा करनेमें मदद पहुँचानेवाली वस्तुका दान, तथा चौथा प्रमाद सेवन करना, यह चार प्रकारका अनर्थडंड कहा जाता है । आते और रौद्रध्यान, यह अपध्यान कहा जाता है, अर्थात् खराब अध्यावसायके अन्दर जो मनकी स्थिति या एकाग्रता होती है, उसे अपध्यान कहते हैं। यह अपध्यान छद्मस्थ अवस्थामें ही जीवोंको होता है। उसमें भी प्राय छठे गुणस्थान तक ही इसकी संभावना होती है,क्योंकि वहाँ तक जीवकोप्रमाद दशा रहती है और ऊपरके गुणस्थानोंमें तो सदा काल अप्रमत्त दशामें रह कर जीव आत्मस्वरूपकी विचारणा या चिन्तवनमें ही रहता है । इस लिए पूर्वोक्त अपध्यान वगैरह सपही अनर्थडंडके अन्दर समझ लेना, किन्तु बाकीके पापकर्मका उपदेश करना, हिंसामें मदद करनेवाली वस्तुका दान करना तथा प्रमाद आचरण करना इन तीन भेदोंका स्पष्टार्थ होनेसे यहाँ पर विस्तार नहीं लिखा है ॥ अब चार शिक्षाव्रतोंका स्वरूप लिखते हैं. . . चार शिक्षाव्रतोंमें प्रथम सामायिक नामक शिक्षाव्रत है, सो किस तरह और कैसे मनुष्यको वह सामायिक प्राप्त होता है, इसके विषय में शास्त्रकार फरमाते हैं-मुहूर्तावधि सावध व्यापारपरिवर्जनम् । आयं शिक्षावतं सामायिकं स्यात्समताजुषाम् ॥१॥
SR No.022003
Book TitleGunsthan Kramaroh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijaymuni
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1919
Total Pages222
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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