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________________ पाँचवाँ गुणस्थान. (३७) रहता है । तथा जेठ और अशाढके महीनेमें केवल तीन पहर तक मिश्र रहता है। इस पूर्वोक्त समयके उपरान्त अचित्त होजाता है । यदि छाना हुआ हो तो एक मुहूर्त्तमात्र समयके बाद ही अचित्त हो जाता है। अचित्त होनेके बाद कितने समयके बाद वह खराब होता है, इस विषयमें हमने कहींपर लेख नहीं देखा, इस लिये हम कुछ नहीं कह सकते । मगर जब तक उसका वर्णादिक न बदले तब तक वह काममें आ सकता है । इसी तरह अन्य पदार्थों में भी सचित्ताचित्तका भेद समझ लेना । पानीके विषयमें सचित्ताचित्त, इस प्रकार समझना-ग्रीष्म ऋतुमें गरम किया हुआ पानी पाँच पहरके बाद सचित्त होता है, किन्तु गरम करते समय उसे तीन उबाल आने चाहिये। जाड़ेकी मौसममें चार पहरके बाद सचित्त हो जाता है। वर्षाकालमें तीन पहरके बाद सचित्त हो जाता है। समयमें फेर फार होनेके कारण वस्तुओंकी स्थितिमें भी फेर फार हो जाता है। गरमीकी मौसम अति रूक्ष होनेसे उस कालमें तीन उबाल द्वारा उष्ण किया हुआ पासुक पानी पाँच पहर तक प्रासुकतया ठहर सकता है । शीत कालका समय स्निग्ध होनेके कारण चार पहर तक ठहर सकता है और वर्षाकालका समय अति स्निग्ध होनेके कारण उस कालमें उष्ण किया हुआ मासुक जल केवल तीन पहर तक ही प्रासुकतया ठहर सकता है, उसके उपरान्त समय होनेपर वह सचित्त होजाता है । उपरोक्त बताई हुई मर्यादासे यदि अधिक समय तक उस पानीको रखना हो तो उसका काल बढ़ानेके लिये उसमें चुना वगैरह डालना चाहिये । यह प्रस्तुत विषय भी बहुत बड़ा है, अतएव यहाँ पर हम इसे सविस्तर लिखना उचित नहीं समझते । यदि किसी जिज्ञासुकी विशेष जाननेकी इच्छा हो तो प्रवचनसारोद्धार,
SR No.022003
Book TitleGunsthan Kramaroh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijaymuni
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1919
Total Pages222
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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