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बारहवाँ गुणस्थान.
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अब बारहवें गुणस्थानके अन्तिम समयमें योगीका कृत्य
बताते हैंअन्त्ये दृष्टिचतुष्कं च, दशकं ज्ञानविघ्नयोः । क्षपयित्वा मुनिः क्षीणमोहः स्यात्केवलात्मकः ॥ ८१||
श्लोकार्थ - अन्तिम समयमें चार दृष्टि तथा ज्ञानान्तरायकी दश प्रकृतियोंको क्षय करके क्षपक मुनि क्षीणमोह होकर केवलात्मक होता है ।
व्याख्या - क्षपक योगी क्षीणमोह नामा बारहवें गुणस्थानके अन्तिम समयमें चक्षु दर्शनादि चार प्रकृतियाँ दर्शनावरणीय कर्मकी, पाँच प्रकृतियाँ ज्ञानावरणीय कर्मकी तथा पाँच ही प्रकृतियाँ अन्तराय कर्मकी, एवं चौदह कर्म प्रकृतियोंको क्षय करके क्षीणमोह होकर केवल ज्ञानात्मक होता है। तथा क्षीणमोह गुणस्थान में रहा हुआ योगी चार दर्शनावरणीय, पाँच ज्ञानावरणीय, पाँच अन्तराय कर्म संबन्धि, उच्च गोत्र, तथा यश नाम, एवं सोलह कर्म प्रकृतियोंके बन्धका अभाव होनेके कारण केवल एक साता वेदनीयका बन्ध करता है, तथा संज्वलनके लोभ, ऋषभनाराच संहनन और नाराच संहनन, इन तीन कर्म प्रकृतियोंका उदय विच्छेद होनेसे सत्तावन कर्म प्रकृतियोंको वेदता है । लोभांशकी सत्ता नष्ट होनेके कारण इस गुणस्थान में एकस एक कर्म प्रकृतियोंकी सत्ता होती है ।
क्षीणमोह गुणस्थानके अन्तमें जो कर्म प्रकृतियाँ शेष रहती अब उनकी संख्या बताते हैं
एवं च क्षीणमोहान्ता, त्रिषष्टिप्रकृतिस्थितिः । पंचाशीति र्जरदस्त्र, प्रायाः शेषाः सयोगिनि ॥ ८२॥
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