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________________ (१३२) गुणस्थानक्रमारोह. सकता है, अभ्याससे चित्त स्थिर हो सकता है, अभ्याससे ही परमानन्दकी प्राप्ति हो सकती है और अभ्यास ही से मनुष्य आत्माका दर्शन कर सकता है। परन्तु अभ्यास वर्जित शास्त्रमें रहे हुए ध्यानसे आत्माको कुछ भी फलप्राप्ति नहीं। जैसे पानीमें प्रतिबिंबित फलोंसे मनुष्यकी तृप्ति नहीं होती, वैसे ही शास्त्रमें रहे हुए ज्ञान ध्यान वगैरह साधनसे भी कुछ लाभ नहीं, किन्तु जब उसका अभ्यास किया जाय, उसे आचरणामें लिया जाय तब ही वह साधन आत्म गुणोंका साधन हो सकता है अन्यथा नहीं। अतः क्षपक महात्मा नीचेके गुणस्थानोंसे धर्म ध्यानका अभ्यास करता हुआ ही आठवें गुणस्थानमें चढ़ता है । ____ आठवें गुणस्थानमें क्षपक योगी शुक्ल ध्यानका प्रारंभ करता है इस लिए अब उसीको बताते हैंतत्राष्टमे गुणस्थाने, शुक्ल सद्ध्यान-मादिमम् । ध्यातुं प्रक्रमते साधुराद्यसंहन नान्वितः॥५१॥ श्लोकार्थ-इस आठवें गुणस्थानमें आद्य संहनन वाला साधु प्रथम शुक्ल ध्यानको प्रारंभ करता है । ____व्याख्या-आठवें गुणस्थानमें आकर क्षपक योगी शुक्ल ध्यानके प्रथम पायेको प्रारंभ करता है, अर्थात् सपृथक्त्व, सवितर्क और सविचार, इस तीन भेद वाले शुक्लध्यानके प्रथम पायेको ध्यानका विषय करता है । यह क्षपक महात्मा वज्र ऋषभ नाराच नामक प्रथम संहनन वाला होता है । अब दो श्लोकों द्वारा ध्यानका स्वरूप बताते हैंनिष्पकंपं विधायाथ, दृढं पर्यङ्क मासनम् । नासाग्र दत्तसन्नेत्र, किञ्चिदुन्मीलितेक्षणः ॥५२॥
SR No.022003
Book TitleGunsthan Kramaroh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijaymuni
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1919
Total Pages222
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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