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________________ सातवाँ गुणस्थान. (११७) सिद्ध होता है । कर्म रूप अरि-शत्रुका नाश करने वाला अरिहन्त कहाता है । जन्म मृत्यु रोग शोक दुःखोंको नष्ट करने वाला अरुहन्त कहा जाता है । अनन्त ज्ञान, दर्शन, चारित्र, वीर्य, इस अनन्त चतुष्टयीको धारण करने वाले साकार परमात्माका चिन्तवन रूपस्थ ध्यानमें किया जाता है। ___ अब चौथे रूपातीत ध्यानका स्वरूप लिखते हैं । रूपातीत-रूपसे-आकारसे अतीत-रहित जो सिद्ध परमात्मा हैं उनका चिन्तवन करना, उसे रूपातीत ध्यान कहते हैं। ज्ञानावरणीय आदि आठ कर्मोंसे सर्वथा रहित होकर जिस आत्माने मोक्ष पदको प्राप्त किया है, उसे सिद्ध परमात्मा कहते हैं । कर्मके वियोगसे जब यह जीवात्मा परम पद मोक्षको प्राप्त होता है तब शरीरके तीन विभागोंमेंसे एक विभाग शरीरकी पोलानको वर्जके दो विभाग प्रमाण जगहमें उसके असंख्य आत्म प्रदेश मोक्ष स्थानमें जा उपस्थित होते हैं । इसे ही सिद्ध अवगाहना कहते हैं। सिद्ध परमात्मा सर्व उपाधिसे रहित होनेके कारण केवळ ज्ञानमय आत्म स्वरूपमें स्थित रहते हैं । अरूपी होनेके कारण वहाँ पर वे जगह नहीं रोकते। एक एककी अवगाहनामें अनन्त सिद्धोंकी अवगाहना समाविष्ट रहती हैं । सिद्ध परमात्माके स्वरूपका वर्णन सिवाय केवल ज्ञानी महात्माके अन्य कोई नहीं कर सकता। पूर्वोक्त अरुपी सिद्ध परमात्माके स्वरूपका चिन्तवन करना, इसे हीरूपातीत ध्यान कहते हैं। यह रूपातीत ध्यान शुक्ल ध्यानका अंश है, इसीसे सातवें गुण स्थानमें शुक्ल ध्यानकी अंशता संभव होती है । सातवें गुणस्थानमें षड़ावश्यक बिना ही आत्म शुद्धि होती है, सो ही शास्त्रकार बताते हैंइत्येतस्मिन् गुणस्थाने, नो सन्यावश्यकानि षट्।
SR No.022003
Book TitleGunsthan Kramaroh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijaymuni
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1919
Total Pages222
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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