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________________ छठा गुणस्थान. ( ९५ ) त्रोंमें खर्चता है तथा अन्य भी किसी परोपकार में व्यय करता है, वह मनुष्य भवान्तरमें लक्ष्मीपात्र होता है । जो मनुष्य दूसरोंको असत्य दूषित बना कर या असत्य कलंक देकर उन्हें चिन्तातुर करता है, वह भवान्तरमें सत्य कलंकका भागी बन कर सदा काल चिन्ता समुद्र में निमग्न रहता है और लोकमें अनेक प्रकारकी कदर्थनाओंको प्राप्त होता है । 1 जो मनुष्य परमात्मा, साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका तथा ज्ञानवान परोपकारी गुणवान पुरुषोंकी प्रशंसा सुन कर खुश होता है तथा उनका विनय बहुमान करता है, वह भवान्तरमें मान सन्मानका पात्र होता है। जो मनुष्य दूसरे जीवोंको सन्मार्ग में जोड़ता है, वह भवान्तर में धर्मात्मा होता है, उसे बड़ी सुगमता से धर्मकी प्राप्ति होती है और जो मनुष्य दूसरे जीवोंको धर्म से पतित करता है, वह जन्मान्तरमें स्वयं अधर्मी पापीष्ट बनता है । जिस जगह पर पशु वध किये जाते हैं या जहाँ पर अपराधि मनुष्यों को सूली या फाँसी दी जाती है, उस समय उस जगह बहुत से मनुष्य इकट्ठे हो जाते हैं और पशु वधकी क्रिया या मनुष्य वधकी क्रियाके देखने में तल्लीन होकर ऐसा विचार करते हैं कि यदि इस मनुष्यको जलदी सूली दी जाय तो हम देख कर जल्दी घर चलें। ऐसे विचार मेरठ शहर प्रभृति अनेक स्थलों में दसहरेके मेले पर सन्ध्या समय रावणको फूँकनेसे प्रथम हजारों ही मनुष्यों के हृदय में पैदा होते हैं । इन विचारोंसे वे सबके सब मनुष्य सामुदायिक आयु कर्म बाँध लेते हैं और उस सामुदायिक आयु कर्मके बन्धसे भवान्तरमें उन सबकी एक ही समय मृत्यु होती है । जिस तरह समुद्र या नदी मार्गको तह करते हुए कभी कभी जलमें स्टीमर या नाव डूब जाती है,
SR No.022003
Book TitleGunsthan Kramaroh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijaymuni
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1919
Total Pages222
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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