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________________ ( ९४ ) गुणस्थानक्रमारोह. गुरु धर्म तथा गुणवान पुरुषों की निन्दा करता है, तोतले मनुष्योंको देख कर उनकी हँसी मस्करी उड़ाकर खुश होता है, वह प्राणी भवान्तरमें रसना (जीभ) इन्द्रियकी हीनता प्राप्त करता है और यदि अभक्ष तथा अपेय पदार्थोंका परित्याग करे और रसवाले पदार्थों में अत्यन्त लोलुपता न रक्खे, जबानसे असत्य वचन न बोले, दूसरोंको प्रीतिकारक वाक्य बोले, रसनाइन्द्रिय हीन प्राणियोंको देख कर उन पर दयाभाव धारण करके उन्हें यथाशक्ति सहायता देवे, तो उसे रसना इन्द्रिय सर्वथा रोगरहित और लावण्यमयी प्राप्त होती है । जो मनुष्य लूले लँगड़े प्राणियों को देख कर उनकी हँसी उड़ाता है या कुतूहल वश हो उन्हें पीड़ा देता है, वह मनुष्य भवान्तरमें लूले लँगड़ेपनेको प्राप्त होता है । जो मनुष्य इस भवमें चोरी, दगाबाजी, ठगाईसे धन इकट्ठा करता है, या जिससे हजारों प्राणियोंका दिल दुःखे, उस प्रकारके आरंभ समारंभसे धन पैदा करता है, धनाढ्य पुरुषों की ईर्षा करके उन्हें निधन इच्छता है, गरीब मनुष्योंकी आजीविका भंग करता है या उन्हें अनेक प्रकारकी दगाबाजीसे पेंचमें लेकर उनकी कमाईको लूट लेने की दानत करता है, विचारे गरीब गुरवे जो अपना विश्वास करके अपनी अमानत - अपना सर्वस्व रख जाते हैं, उनकी उस अमानत या उनके सर्वस्वको हजम करता है, वह मनुष्य भवान्तरमें महादरिद्री और निधन होता है, जो गरीब प्राणियों पर दयाभाव रख कर उन्हें यथा सामर्थ्य सहायता पहुँचाता है, धनवान मनुष्यों को देख कर उनकी ईर्षा नहीं करता और खुद प्राप्त की हुई लक्ष्मीको सन्मार्गमें व्यय करता है तथा उससे मनमें गर्व धारण नहीं करता, गरीब गुरबोंको मदद करता है, उस लक्ष्मीको सर्वज्ञ देवके कथन किये हुए सात क्षे
SR No.022003
Book TitleGunsthan Kramaroh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijaymuni
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1919
Total Pages222
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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