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आजम्मं आभिओगाणं॥४॥ सारीरं नत्थि देवाणं, दुक्खेणं माणसेण यो अइबलियं वज्जिभ हिययं,सयखंडं जनवी फुडे ॥५॥ | णिविभागे य जे भणिए, दोनि मझुत्तमे दुहे। मणुयाणते समक्खाए,गब्भवक्रतियाण 3॥६॥ असंखेयाउमणुयाणं, दुक्खं जाणे विमझिमी संखेआउमणुस्साणं तु, दुक्खं चेवुक्कोसगं॥७॥ असोक्खं वेयणा वाही, पीडा दुक्खमणिव्वुई। अणरागमरई केसं, एवमादी एगट्ठिया बहू ॥८॥ सारीरेयरभेदंति, जं भणियंतं पवक्खई। सारीरं गोयमा! दुक्खं,सुपरिफुडं तमवधारय॥९॥ वालग्गकोडिलक्खमयं, भागमित्तं छिवे धुवे। अचिरअणण्णपदेससरं, कुंथुमणहवित्तिं खणं॥३०॥ तेणवि करकत्तिसल्लेउ, हिय्यसु (मु)द्धसए तणू। सीयंती अंगभंगाईगुरु, उवेइ सव्वसरीरं सब्भंतरं, कंपे थरथरस्स य॥१॥ कुंथुफरिसियमेत्तस्स, जं सलसलसले तणुं। तमवसं भिनसव्वंगे, कलयलडझंतमाणसे॥२॥ चिंतंतो हा किं किमेयं, बाहे गुरुपीडाकर?। दीहुण्हमुक्कनीसासे, दुक्खं दुक्खेण नित्थरे ॥३॥ किमेय? कियचिरं बाहे?, कियचिरेणेव णिविही?। कहं वाऽहं विभुच्चीसं?, इमाउ दुक्खसंकडा॥४॥ गच्छं चेटु सुवं उठें, धावणासंपलामि 3 कंडुगयं? किं वपक्खोडं?, किं वा पत्थं करेभिऽहं?॥५एवं तिवग्गवावारतिव्योरुदुक्खसंक्डे। पविट्ठो बाढं संखेना, आवलियाओ किलिस्सियं ॥६॥ मुणेऽहमेस कंडू मे, अण्णहा णो उवस्समे। ता एवझवसाएणं, गोयम! | निसुणेसु जं करे॥७॥ अह तं कुंथु वावाए, जइ णो अन्नत्यं गयं भवे। कंडूयमाणोऽह भित्तादी, अणुधसमाणो किलिस्सए॥८॥ जइवा वावजंतं कुंथु, कंडूयमाणो व इयरहा। तो तं अइरोद्दज्झाणमि, पविट्ठ णिच्छयओ मुणे॥९॥ अह किलमेतउभयपणे, ॥ श्री महानिशीथसूत्र
पू. सागरजी म. संशोधित
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