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देहत्थं जाव कत्थई ॥५॥ एकंपि चिट्ठए सुहुमं, णीसल्लो ताव णो भवे। तम्हा आलोयणं दाउं, पायच्छित्तं करेऊण। एयं || निकवडनिदंर्भ, नीसालं काउं तवं॥६॥ जत्थ जत्थोवजेजा, देवेसु माणुसेसु वा। तत्थ तत्थुत्तमा जाई, उत्तमा सिद्धिसंपया। लभेज्जा उत्तम रूवं, सोहग्गं जइ णं नो सिझिज्जा तब्भवे॥२१७॥ त्ति बेमि। महानिसीहसुयक्खंधस्सपढ अझयणं सालुद्धरणं नाम॥
एयस्स य कुलिहियदोसो न दायव्यो सुयहरेहिं, किंतु जो चेव एयस्स पुवायरिसो आसि तत्थेव कत्थई सिलोगो कत्थई | | सिलोगद्धंकत्थई पयक्खरं कत्थई अक्खरपंतिया कत्थई पत्तगपुहियाकत्थई बे तिन्नि पत्तगाणि एवभाइ बहुगंथं परिगलियंति।७। निम्मूलुद्धियसल्लेणं, सव्वभावेण गोयमा! झाणे पविसेत्तु सम्मेयं, पच्चक्खं पासियव्वयं ॥१॥ जे सण्णी जेवि यासन्नी, भव्वाभव्वा उ जे जगे। सुहत्थी तिरियमुड्ढाहं, इहमिहाडेंति दसदिसिं॥२॥ असन्नी दुविहे ए, वियलिंदी एगिदिए। वियले किमिकुंथुमच्छादी, | पुढवादी एगिदिए॥३॥ पसुपक्खीभिगा सण्णी, नेरइया मणुया नरा। भव्वाभव्वावि अत्थेसं, नीरए उभयवज्जिए।४। धमत्ता
जंति छायाए, वियलिंदी सिसिराऽऽवयं। होही सोक्खं किलऽम्हाणं, ता दुक्खं तत्थवी भवे५। सुकुमालंग गयतालुं, खणदाहं सिसिरं खणी न इमं अहियासेडं, सक्कुणं एवमादियं॥६॥ मेहुणसंकप्परागाओ, मोहा अण्णाणदोसओ। पुढवादीसु गएगिंदी, ण याणंती दुक्खंसुहं ॥७॥ परिव्वत्तं चणंतेवि, काले बेइंदियत्तणी केई जीवा " पावेती, केई पुणोऽणादियाविय॥८॥ ॥ श्री महानिशीथसूत्र ॥
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पू. सागरजी म. संशोधित
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