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गहनक्खत्तपरियरियं, कोमुइचंदं खहे ऽमले ॥४॥ दिष्यंतकुवलय कल्हारं, कुमुयस्यवत्त्वणम्फई। कुरुलियंते हंसकारंडे, चक्कवाए सुणेइ य ॥५॥ जमदिट्ठ सत्तसुवि साहासु (अब्भुअं चंदमंडलं ) । तं दद्धं विम्हिओ खणं, चिंतइ एयं जहा होही ॥ ६ ॥ एवं तं सग्गं ताऽहं ( बंधवाणं पमोययं) बंधवाणं पयंसिमो । बहुकालेणं गवेसे, ते घेत्तूण समागओ ॥ ७ ॥ घणघोरंधयाररयणी, भद्दवकिण्हचउद्दसीहिं तु । ण पेच्छे जाव तं रिद्धिं, बहुकाल निहालिउं ॥ ८ ॥ पुण कच्छभो नु जह उ, तहावि तं रिद्धिं न पेच्छइ । एवं चउगईभवगहणे, दुल्लभे माणुसत्तणे ॥९॥ अहिंसालक्खणं धम्मं, लहिऊणं जो पमायई । सो पुण बहुभवलक्खेसु, दुक्खेहिं माणुसत्तणं, लद्धंपि न लब्भई धम्मं तं रिद्धिं कच्छभो जहा ॥ ३९० ॥ दियहाई दो व तिन्नि व, अद्धाणं होइ जं तु लग्गे गो | सव्वायरेण तस्सवि, संबलयं लेइ पविसंतो॥१॥ जो पुण दीहपवासो चुलसीई जोणिलक्खनियमेणं । तस्स तवसीलमइयं संबलयं किं न चिंतेह ? ॥ २ ॥ जह २ पहरे दियहे मासे संवच्छरे य वोलंति। तह २ गोयम ! जाणसु दुक्खे आसन्नयं मरणं ॥ ३॥ जस्स न नज्जइ कालं न य वेला नेय दियहपरिमाणं । नाएवि नत्थि कोइवि जगंमि अजरामरो एत्थं ॥४॥ पावो पमायवसओ जीवो संसारकज्जमुज्जुत्तो। दुक्खेहिं न निव्विन्नो सुक्खेहिं न गोयमा ! तिप्पे ॥५ ॥ जीवेण जाणि उ विसज्जियाणि जाईसएस देहाणि । थेवेहिं तओ सयलंपि तिहयणं होज्ज पडिहत्थं ॥ ६ ॥ नहदंतमुद्ध भमुह क्खिकेस जीवेण विप्पमुक्केसुवि। तेसुवि हविज्ज कुलसेलमेरु गिरिसन्निभे | कूडे ॥७॥ हिमवंतमलयमंदर दीवोदहिधरणिसरिसरासीओ। अहिययरो आहारो जीवेणाहारिओ अनंतहुत्तो ॥ ८ ॥ गुरुदुक्ख भरुछतस्स ॥ श्री महानिशीथसूत्रं ॥
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पू. सागरजी म. संशोधित
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