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सुद्ध, अट्ठमयठाणविरहिओ। (भ)जतो धम्मतित्थयरे, सिद्धे लोगग्गसंठिए ॥१॥ आलोएत्ताण णीसल्लं, सामण्णेण पुणोविय। वंदित्ता चेइए साहू विहिपुब्वेण खमावए॥२॥ खामित्ता पावसालस्स, निम्मूलुद्धरणं पुणो करेजा विहिपुव्वेण, रंजंतो ससुरासुरं जग॥३॥ एवं होऊण निस्सल्लो, सव्वभावेण पुणरवि। विहिपुव्वं चेइए वंदे, खामे साहम्मिए तहा॥४॥ नवरं जेण समं वुच्छो, जेहिं सद्धिं पविहरिओ। खरफुरुसं चोईओ जेहिं, स्यं वा जो य चोइओ॥५॥ जोऽविय कमजे वा, भणिओ खरफरुसनिठुरं। पडिभणियं जेणवी किंचि, सो जइ जीवइ जइ मओ॥६॥ खभियव्वो सच्च( व्व )भावेण, जीवंतो जत्थ | चिट्ठई। तत्थ गंतूण विणएण, मओऽवी साहसक्खिय॥७॥ एवं-खामणमरिसामणं काउं, तिहयणस्सवि भावओ। सुद्धो मणवइकाएहिं, एयं धोसिज निच्छओ॥८॥ खमावेमि अहं सव्वे, सव्वे जीवा खमंतु मे। मित्ती मे सव्वभूएसु, वे मज्झण केणई॥९॥ खमामहंपि सव्वेसिं, सव्वभावेण सव्वह।। भवे भवेसुवि जंतूणं, वाया मणसा य कम्मुणा॥६०॥ एवं वंदिना | चेइय, साहू सक्खं विही यऽओ। गुरुस्सावि विही पुव्वं, खामणमरिसामणं करे॥१॥खमावेत्तुं गुरुं सम्म, नाणमहिमं ससत्तिओ। काऊणं वंदिऊणं च, विहिपुव्वेणं पुणोऽविय ॥२॥ परमत्थतत्तसारत्थं, सल्लुद्धरणमिमं मुणे। मुणेत्ता तहमालोए (जह आलोयंतो चेव), उपए केवलं नाणं॥३॥ दिनेरिसभावत्थेहिं, नीसाला आलोयण। जेणालोयमाणेण चेव, उपत्रं तत्थेव केवलं॥४॥ केसिंचि साहेमो नामे, महासत्ताण गोयमा! जेहिं भावेणालोययंतेहिं, केवलनाण समुष्याइयं ॥५॥ हाहा दुटु कडे साहू, हाहा ॥ श्री महानिशीथसूत्रं ॥
पू. सागरजी म. संशोधित
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