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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पण हिं। दिट्ठो जिणो वदिट्ठो सगइमग्गो कहविलद्धो ॥२॥माणुस्सदेसकुलकालजाइइंदियबलोक्याणं चोविन्नाणं सद्धा दंसणं च दुलहं सुसाहूणं॥ ३॥ पत्तेसुवि एएसुं मोहस्सुदएण दुल्लहो। सुपहो कुपहबहुयत्तणेण य विसयसुहाणं च लोभेणं॥ ४॥ सो य पहो उवलद्धो जस्स जए बाहिरो जणो बहुओ।संपत्तिच्चियन चिरं तम्हा नखमो पमाओ भे॥५॥जह जह दढप्पइण्णो समणो वेग्गभावणं कुणइ तह तह असुभं आयवहयं व सीयं खयमुवेइ॥६॥ एगअहोरत्तेणवि दढपरिणामो अणुत्तरं जंति। कंडरिओ पुंडरिओ अहरगईउड्वगमणेसु॥७॥ बारसवि भावणाओ एवं संखेवओ समत्ताओ। भावेमाणो जीवो जाओ समुवेइ वेगं ॥८॥ भाविज भावणाओ पालिज क्याई स्यणसरिया (सा)ई। पडिपुण्णपावखवणे अइरा सिद्धिपि पाविहिसि ॥९॥ कत्थइ सुहं सुरसमं कत्थइ निरओवभ हवइ दुक्खी कत्थ्इ तिरियसरित्थं माणुसजाई बहुविचित्ता॥ ६४०॥ ददुणवि अप्पसुहं माणुस्सं गदोस( सोग )संजुत्तो सुटुवि हियमुवइ8 कजं न मुणेइ मूढजणो॥१॥जह नाम पट्टणगआ संते मुल्लंमि मूढभावेणी न लहंति नरा लाहं माणुसभावंतहा पत्ता॥२॥संपत्ते बलविरिए सव्वभावपरिक्खणं अजाणतानि लहंति नरा बोहिं दुग्गइमगंच पावंति ॥३॥अम्मापियरो भाया भज्जा पुत्त। सरीर अत्थो यो भवसागरंभि धोरे न हुँति ताणं च सरणं च॥४॥नवि माया नविय पिया न पुत्तदारा न चेव बंधुजणो।नविय धणं नविधनं दुक्खभुइन्न उवसति ॥५॥जइया सयणिज्जगओ दुक्खत्तो सयणबंधुपरिहीणो।उव्वत्तइ चरियत्तइ उरगो जह अग्गिमामि॥६॥ असुइ सरीरं रोगा जम्मणस्यसाहणं छुहा तण्हा उण्हं सीयं वाओ पहाभिधाया यणेगविहा||७||सोगजरामरणाई परिस्समो दीणया य ॥ श्री भरणसमाधि सूत्र॥ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only
SR No.021035
Book TitleAgam 33 Prakirnaka 10 Maran Samadhi Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages57
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_maransamadhi
File Size8 MB
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