SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 24
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ||परम वुच्छं ॥८॥कोहं खमाइ माणं महवया अज्जवेण मायं च संतोसेण व लोहं निजिण चत्तारिवि कसाए॥९॥कोहस्सव माणस्स व मायालोभेसु वा न एएसि। वच्चई वसं खणंपि हु दुग्गगईवडणकराणं ॥ १९०॥ एवं तु कसायग्गिं संतोसेणं तु विझवेयव्यो। रागद्दोसपवत्तिं वजेमाणस्स विझाइ ॥१॥जावंति केइ ठाणा उदीरगा हुंति हुं (इह ) कसायाणं । ते ३ सया वजंतो विमुत्तसंगो मुणी/ विहरे॥ २॥ संतोवसंतधिइम परीसहविहिं व समहियासंतो। निस्संगयाइ सुविहिय! संलिह मोहे कसाए २ ॥ ३॥ इटाणिढेसु सया सद्दफरिससरुवगंधेहिं। सुहदुक्खनिव्विसेसो जियसंगपरीसहो विहरे॥ ४॥ सभिईसु पंचसमिओ जिणाहि तं पंच इंदिए सुद्धा तिहिं| गारवेहिं रहिओ होइ तिगुत्तो यदंडेहिं ॥५॥ सनासु आसवेसु अअट्टे रुद्दे अतं विसुद्धप्यारागहोसपवंचे निजिणि सव्वणोजुत्तो॥६॥ को दुक्ख पाविजा? कस्स य सुक्खेहिं विम्हओ हुजाको वा न लभिज मुक्खं? रागदोसा जइ न हुजा॥७॥ नवितं कुणइ अमित्तो सद्भुविय विराहिओ समत्थोविजं दोवि अनिगहिया कति रागो य दोसोय ॥८॥तं मुयह रागदोसे सेयं चिंतेह अपणो निच्चीज तेहि | इच्छह गुणं तं बुक्क्षह बहुतरं पच्छ।॥९॥ इलहोए आयासं अयसं च करिति गुणविणासं च ।पसवंतिय परलोए सारीरमणोगए दुक्खे ॥ २००॥ धिद्धी अहो अकजं जं जाणंतोऽवि रागदोसेहि। फलमउलं कडुयरसं तं चेव निसेवर जीवो ॥१॥ तं जइ इच्छसि गंतुं तीर भवसायरस घोरस्सोतो तवसंजमभंडं सुविहिय! गिण्हाहि तूरंतो ॥२॥बहुभयकरदोसाणं सम्मत्तचरित्तगुणविणासाणीनहु वसमागंतव्य रागहोसाण पावाणं ॥ ३॥ जं न लहइ सम्मत्तं लभ्रूणवि जं न एइ वेग्गी विसयसुहेसु य रज्जइ सो दोसो रागदोसाणं ॥ ४॥ | ॥श्री मरणसमाथि सूत्र] पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only
SR No.021035
Book TitleAgam 33 Prakirnaka 10 Maran Samadhi Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages57
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_maransamadhi
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy