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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir |बहहा।सा होइ बीयभूया कयपरिकम्मस्स मरणम्मि ॥२॥ तं फासेहि चरित्तं तुमंपि सुहसीलयं यमुत्तूणं सव्वं परीसहच, अहियासंतो/ धिइबलेणं ॥३॥सद्दे रूवे गंधे रसे य फासे य सुविहिय! जिणेहि। सव्वेसु कसाएसु य निग्गहपरमो सया होहि ॥४॥सव्वे रसे पणीए निजूहेऊण पंतलुक्खेहि अन्नयरेणुवहाणेण संलिहे अप्पगंकमसो ॥५॥संलेहणाय दुविहा अब्धेितरिया य बाहिरा चेवोअब्भिंतरिया कसाए बाहिरिया होइ यसरी॥६॥ उगमउपायणएसणाविसुद्धेण अण्णपाणेणी मियविरसलुक्खलूहेण दुब्बलं कुणसु अध्याग। ७॥उल्लीणोलीणेहि यअहवण एगंतबद्धमाणेहि। संलिह सरीरमेयं आहारविहिं प्यणुयंतो ॥८॥तत्तोअणुपुव्वेणाहारं उवहिं सुओवएसेणी विविहत्वोकम्मेहि यं इंदियविक्कीलियाईहिं ॥९॥तिविहाहिं एसणाहि य विविहेहि अभिग्गहेहि उग्गेहि। संजममविरहितो जहाबलं संलिह सरीरं॥ १८०॥ विविहाहि व पडिमाहि य बलवीरियजई य संपहोइ सुहं। ताओवि न बाहिती जहकमें संलिहंतम्मि॥१॥ छम्मासिया जहन्ना उक्कोसा बारसेव वरिसाइंआयंबिलं महेसी तत्थ य उक्कोसयं बिंति ॥२॥छमदसमदुवालसेहिं भत्तेहिं चित्तकट्टेहि। मियलहुकं आहारं करेहि आयंबिलं विहिणा॥ ३॥ परिवड्डिओवहाणो ण्हारूविरावियवियडपांसुलिकडीओ। संलिहियतणुसरीरो अझप्परओ मुणी निच्चं ॥४॥ एवं सरीरसंलेहणाविहिं बहुविहंपि फासिंतो। अझवसाणविसुद्धिं खणंपि तो मा पमाइत्था ॥५॥ अन्झवसाणविसुद्धीविवज्जिया जे तवं विगिढमवि।कुव्वंति बाललेसा न होइ सा केवला सुद्धी ॥६॥एयं सरागसंलेहणाविहिं जइ जई| समायरइ। पई यो केवल सुद्धिं ॥७॥निखिला फासेयन्ना गरीम्सलेहणाविही साइत्तो कमायजोगा अवधि ॥श्री मरणसमाधि सूत्र। पू.सागर नाम For Private And Personal Use Only
SR No.021035
Book TitleAgam 33 Prakirnaka 10 Maran Samadhi Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages57
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_maransamadhi
File Size8 MB
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