SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 17
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kallassagarsuri Gyanmandir बालभरणाई ॥७॥ इय अवि मोहपउत्ता मोहं मोत्तूण गुरुसगासम्मिआलोइय निस्सल्ला मरिउ आराहगा तेऽवि ॥८॥ इत्थ विसेसा|| भण्णइ छलणा अवि नाम हुज्ज जिणकप्यो। किं पुण इयरमुणीणं तेण विही देसिओ इणमो ॥ ९॥ अपविहाणी जाहे धीरा सुयसारझरियपरमत्था। ते आयरिय विदिन उविंति अब्भुजयं मरणं ॥८०॥आलोयाइ संलेहाइ खमाइ काल उस्सगे। ओगासे संथारे निसग वेग मुक्खाए ॥१॥झाणविसेसो लेसा सम्मत्तं पायगमणयं चेवा चउदसओ एस विही पढमो मरणमि नायव्वो॥२॥ विणओवयार माणस्स भंजणा पूयणा गुरुजणस्सा तित्थयराण य आणा सुयधम्माऽऽराहणाऽकिरिया ॥ ३॥ छत्तीसाठपणेसु य जे पवयणसारझरियपरमत्था। तेसिं पासे सोही पण्णता धीरपुरिसेहिं॥४॥ वयछक्क कायछक्कं बारसगं तह अकम्प गिहिभाणी पलियंक गिहिनिसिज्जा ससोभ पलिमज्जण सिणाण॥ ५॥ आयारवं च उवधारवं च ववहारविहिविहिनू यो उव्वीलगा य धीरा परुवणाए विहिण्णू या॥६॥ तह य अवायविहिनू निजवगा जिणमयम्मि गहियत्था। अपरिस्साई य तहा विस्तासरहस्सनिच्छिड्ड। ॥७॥ पढम अट्ठारसगं अट्ठ य ठाणाणि एव भणियाणिोइत्तो दस ठाणाणि य जेसु उवट्ठावणा भणिया ॥८॥अणवठ्ठतिगं पारंचिगं च तिगमेय छहि गिहीभूया।जाणंति जे उ एए सुअयणकरंडगा सूरी ॥९॥सम्मइंसणचत्तं जे य वियाणंति आगमविहिन्न।जाणंति चरित्ताओ य निग्गयं अपरिसेसाओ ॥९०॥जो आरंभे वट्टइ चिअत्तकिच्चो अणणुतावी यासोगो अ भवे दसमो जेसूवढावणा भणिया ॥१॥एएसु विहिविहण्णू छत्तीसाठाणएसुजे सूरीीते पवयणसुहकेऊ छत्तीसगुणत्ति नायव्वो॥२॥तेसिं मेरुमहोयहिमेयणिससिसरसरिसकप्याणी ॥श्री मरणसमाथि सूत्र॥ | पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only
SR No.021035
Book TitleAgam 33 Prakirnaka 10 Maran Samadhi Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages57
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_maransamadhi
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy