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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ||कंदपंभावणं कुणइ ॥१॥नाणस्स केवलीणं धम्मायरियस्ससंघसाहूणीमाई अवण्णवाई किदिवसियं भावणं कुणइ॥२॥मंताभिओगा कोउग भूईकम्मं च जो जणे कुणइ। सायरसइड्डिहे अभिओगं भावणं कुणइ॥ ३॥ अणुबद्धरोसवुग्गहसंपत्त तहा निमित्तपडिसेवी।। एएहिं कारणेहिं आसुरियं भावणं कुणइ॥ ४॥ उम्मग्गदेसणा नाण (मग) दूसणा मागविष्यणासो ओ मोहेण मोहयंतसि भावणं जाण सम्मोहं॥५॥ एयाउ पंच वज्जिय इणमो छट्ठीइ विहर तं धीर!पंचसमिओ तिगुत्तो निस्संगो सव्वसंगेहिं॥६॥ एयाए भावणाए विहर विसुद्धाइ दोहकालम्मिोकाऊण अंतसुद्धिं दसणनाणे चरित्ते य॥७॥पंचविहं जे सुद्धिं पंचविहविवेगसंजुयमकाउंइह उवणमंति मरणं ते उ समाहिं न पाविति॥८॥ पंचविहं जे सुद्धिं पत्ता निखिलेण निच्छियमईया। पंचविहं च विवेगं ते हु समाहिं परं पत्ता॥९॥ लहिणं संसारे सुदुल्लहं कहवि माणुसं जम्मान लहंति मरणदुलहं जीवा थम जिणक्खाय॥७०॥ किच्छाहि पावियम्भिवि सामण्णे. कम्मसत्तिओसन्ना।सीयंति सायदुलहा पंकोसन्नो जहा नागो ॥१॥जह कागणीइ हेउं मणिरयणाणं तु हारए कोडिं तह सिद्धसुहपक्खा अबुहा सजति कामेसु ॥ २॥ चोरो रक्खसपहओ अत्थत्थी हणइ पंथियं मूढो। इय लिंगी सुहरक्खसपहओ विसयाउरो धम्म ॥३॥ तेसुवि अलद्धपसरा अवियोहा दुक्खिया गयमईया। समुविंति मरणकाले पगामभयभेरवं नरयं ॥४॥धम्मो न कओ साहू न जेमिओ नय नियंसियं सह। इण्हिं परं परासु (प्र० रु )त्ति य नेव य पत्ताई सुक्खाई॥५॥ साहूणं नोवयं परलोयच्छेय संजमो न कओ दुहओऽवि तओ विहलो अह जम्मो धम्मक्खाणं ॥६॥ दिक्खं मइलेमाणा मोहमहावत्तसागराभिहया। तस्स अपडिक्कमंता मरंति ते Hश्री मरणसमाधि सूत्र। पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only
SR No.021035
Book TitleAgam 33 Prakirnaka 10 Maran Samadhi Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages57
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_maransamadhi
File Size8 MB
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