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जिभिदियस्स केवइया कक्खडगरुयगुणा पं०?, गो०! अणंता, एवं फासिंदियस्सवि, एवं मध्यलहुयगुणावि, एतेसिंणं भंते! || बेइंदियाणं जिभिदियफासिंदियाणं कक्खडगुरुयगुणाणं मउयलहुयगुणाणयकतरे०?, गो०! सव्वत्थोवा बेइंदिया जिभिदियस्स कक्खडगरुयगुणा फासिंदियस्स कक्खडगरुय० अणंत० फासिंदियस्स कक्खडगरुयगुणेहिंतो तस्स चेव मउयलहुय० अणंत० जिभिदियस्समध्यलहुय० अणंत०, एवं जाव चारिदियत्ति, नवरं इंदियपरिवुड्ढी कातव्वा, तेइंदियाणंघाणिदिए थोवे चरिदियाणं चक्खिंदिए थोवे सेसं तं चेव, पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं मणूसाण य जहा नेरइयाणं, णवरं फासिदिए छव्विहसंठाणसंठिते पं० तं०-समचउरंसे निगोह० परिमंडले सादी खुजे वामणे हुंडे, वाणमंतरजोइसियवमाणियाणं जहा असुरकुमाराणं । १९३१ पुढाई भंते! सद्दाई सुणेति अपुढाई सहाई सुणेति?, गो०! पुढाई सद्दाई सुणेति नो अपुट्ठाई, पुट्ठाई भंते! रूवाई पासति अपुट्ठाई०?, गो०! नो पुट्ठाइं० अपुढाई० पासति, पुट्ठाई भंते! गंधाई अग्धाइ अपुढाई०?, गो०! पुढाई अग्धाइ नो अपुट्ठाई०, एवं रसाणवि फासाणवि णवरं रसाइं अस्साएति फासाई पडिसंवेदेतित्ति अभिलावो कायव्वो, पविट्ठाई भंते! सदाई सुणेति अपविठ्ठाई०?, गो०! पविठ्ठाई सद्दाइं सुणेति नो अपविट्ठाई०, एवं जहा पुढाणि तहा पविठ्ठाणिवि। १९४। सोतिंदियस्स णं भंते! केवतिए विसए पं०?, गो०! जह० अंगुलस्स असंखेजतिभागो उक्कोसेणं बारसहिं जोअणेहिंतो अच्छिण्णे पोग्गले पुढे पविठ्ठातिं सहातिं सुणेति, चक्खिदियस्स णं भंते! केवतिए विसए पं०?, गो०! जह० अंगुलस्स संखेजतिभागो उक्को० सातिरेगाओ जोयणसतसहस्साओ अच्छिण्णे रूवाई
|| श्री प्रज्ञापनोपांगम् ॥
पू. सागरजी म. संशोधित
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