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आयावणभूमीए पच्चोरुहइत्ता वागलवथनियत्थे जेणेव सए उडए तेणेव उवागच्छइत्ता किढिसंकाइयगं| रोक्खेइ पुरच्छिमाए दिसाए सोमे महाराया पत्थाणे पत्थियं अभिरक्ख३ सिवंरायरिसिं जाणिय तत्थ कंदाणि नाणिय पुष्पाणि य फलाणिय बीयाणि य हरियाणि य ताणि अणुजाणउत्तिकटु पुरच्छिभं दिसं पसरति (य जाव हरियाणि य ताई गेण्हइ त्ता किढिणसंकाइयं भरेइ त्ता दब्भे कुसे य समिहाओ य पत्तामोडं च गेण्हेइ तेणेव उवागच्छइ त्ता किढिणसंकाइयंग ठवेइ ना वेदि वड्ढे ३ त्ता उवलेवणसंमजणं करेइ त्ता । जेणेव गंगा महानदी तेणेव उवागच्छइ त्ता गंगामहानदी ओगाहेति त्ता जलमजणं करेइत्ता जलकीडं करेइ आयंते चोक्खे परमसुईभूए देवयपितिकयकजे दब्भसगब्भकलसाहत्थगए गंगाओ महानईओ पच्चुत्तरइत्ता गच्छइ त्ता दब्भेहि य कुसेहि य वालुयाएहि य वेति रएति त्ता सरएणं अरणिं महेति त्ता अग्गि पाडेति त्ता हाई पक्खिवइत्ता अगि उज्जालेइ त्ता 'अग्गिस्स दाहिणेपासे, सत्तंगाई समादहे । तं०-सकहं वक्कलं
२०॥ दासं तहा पाणं अहे ताई समादहे , महुणा यथएणय तंदुलेहि य अग्गि हुणइत्ता चक्र साहेइ त्ता किया अपणा आहारमाहारेति, तए णं से सिवे रायरिसी दोच्चं छट्ठक्खमण
वमणपारणगंसियावणभूमीओपच्चोरुहइना एवं जहा पढमपारण
मगर जीभ. संशोधित
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