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जणवयवगंसमोहए ना वाणारसिं नगरि रायगिहं च नगरं अंतरा एगं महं जणवयवगं जा०पा०?, हंता जाणति पासति, से भंते! किं|| तहाभावं जाणइ पासइ अनहाभावं जाणइ पा०?, गोयमा ! णो तहाभावं जाणति पासइ अत्रहाभावं जाणइ पासइ, सेकेणद्वेणं जाव पासइ?, गोयमा ! तस्स खलु एवं भवति एसा खलु वाणारसी नगरी एस खलु रायगिहे नगरे एसखलु अंत। एगे महं जणवयवग्गे नो खलु एस महं वीरियलद्धी वेब्धियलद्धि विभंगनाणलद्धी इड्ढी जुत्ती जसे बले वीरिए पुरिसकारपरकमे लद्धे पत्ते अभिसमण्णागए, से से दंसणेविवच्चासे भवति, से तेण्डेणं जावपासति ।१६१।अणगारे गंभंते! भावियप्पा अमाई सम्भदिट्ठी वीरियलद्धीए वेब्वियलद्धीए ओहिनाणलद्धीए रायगिहे नगरे समोहए त्ता वाणारसीए नगरीए रूवाई जाणइ पासइ?, हंता०, से भंते! किं तहाभावं जाणइ पासइ अण्णहाभावं जाणति पासति?, गोयमा ! तहाभावं जाणति पासति नो अन्नहाभावं जाणति पासति, सेकेणद्वेणं भंते! एवं वच्चाई गोयमा! तस्सं णं एवं भवति एवं खलु अहं रायगिहे नगरे समोहए नगरे समोहए समोहणित्ता वाणारसीए नगरीए रुवाई जाणामि पासामि, से से दंसणे अविवच्चासे भवति, ते तेण्डेणं गोयमा! एवं वुब्धति०, बीओ आलावगो एवं चेव नवरं वाणारसीए नगरीए, समोहणा नेयव्वा रायगिहे नगरे रूवाई जाणइ पासइ, अणगारे णं भंते! भावियप्या अमाई सम्मदिट्ठी वीरियलद्धीए वेउब्वियलद्धीए
ओहिन्नणलद्धीए रायगिहं नगरं वाणारसिं नारि च अंतरा एगं महं जणवयवगं समोहए त्ता रायगिह नगरं वाणारसिं च नगरि अंतरा |एगं महं जणव्यवग्गं जाणइ पासइ?, हंता जा० पा०, से भंते! किं तहाभावं जाणइ पासइ? अनहाभावं जाणइ पासइ?, गोयमा! ॥ श्रीभगवती सूत्र॥
पू. सागरजी म. संशोधित
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