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उन्नयमाणे य नरे महया मोहेण मुज्जइ, संबाहा बहवे भुजो २ दुरइक्कमा अजाणओ अपासओ, एयं ते मा होउ एयं कुसलस्स देसणं, तद्दिट्ठीए तम्मुत्तीए तप्पुरत्कारे तस्सनी तत्रिवेसणे जयं विहारी चित्तनिवाई पंथनिज्झाई, पलिबाहिरे पासिय पाणे गच्छिज्जा १५८से अभिक्कममाणे पडिकमाणे संकुचमाणे पसारेमाणे विणिवट्टमाणे संपलिजमाणे एगया गुणसमियस्सरीयओ कायसंफासं समणुचित्रा एगतिया पाणा उद्दायंति इहलोगवेयणविजावडियं, जं आउट्टिकयं कंमं तं परित्राय विवेगमेइ, एवं से अप्यमाएण विवेगं किट्टइ वेयवी || १५९। से पभूयदंसी पभूथपरित्राणे उवसंते समिए सहिए सयाजए तुं विपडिवेएइ अपाणं, किमेस जणो करिस्सइ?, एस से परमारामो जाओ लोगंमि इत्थीओ, मुणिणा हु यं पवेइयं उब्बाहिजमाणे गामधभ्भेहिं अवि निब्बलासए अवि ओभोयरियं कुज्जा अवि| उड्ढं ठाणं ठाइज्जा अविगामाणुगाम दुइजिजा अवि आहारं वुच्छिंदिज्जा, अवि चए इत्थीसुमणं, पुव्वं दंडा पच्छ। फासा पुव्वं फासा|| पच्छा दंडा, इच्चेए कलहा संगयरा भवंति, पडिलेहाए आगमित्ता आणविज्जा अणासेवणाएत्तिबेमि, से नो काहिए नो पासणिए नो संपसारणिए नो मामए णो क्यकिरिए वइगुत्ते अज्झप्पसंवुडे परिवजइसया पावं, एयं मोणं समणुवासिज्जासित्तिबेमि।१६० अ० ५३०४॥
से बेमि तंजहा अवि हरए पडिपुण्णे समंसि भोमे चिट्ठइ उवसंतरए सारक्खमाणे, से चिट्ठइ सोयमझगए, से पास सव्वओ गुत्ते, पास लोए महेसिणो जे य पत्राणमंता पबुद्धा आरम्भो वरया, सम्ममेयंति पासह, कालस्स कंखाए परिव्वयंतित्तिबेमि । १६१।। | ॥श्रीआचाराङ्ग सूत्र॥
| पू. सागरजी म. संशोधित ||
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