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आवंती केयावंती लोयंसि अपरिग्गहावंती, एएसु चेव अपरिग्गहावंती सुच्चा वई मेहावी पंडियाण निसामिया समियाए|| धम्मे आरिएहिं पवेइए जहत्य मए संधी जोसिए एवमन्नत्य संधी दुजोसए भवइ तम्हा बेमि नो निहणिज्ज वीरियं । १५२१ जे पुखुट्टाई नो पच्छानिवाई जे पुबुढाई पच्छानिवाई जे नो पुबुढ़ायी नो पच्छानिवाई सेऽवि तारिसए सिया जे परित्राय लोगमनसयंति ।१५३ एयं नियाय मुणिणा पवेइयं इह आणाकंखी पंडिए, अणिहे पुव्वावरायं जयमाणे सया सीलं सुपेहाए, सुणिया भवे अकामे अझंझे, इमेण चेव जुज्झाहि किं ते जुज्झेण बझओ? | १५४। जुद्धारिहं खलु (च०पा०) दुलहं जहित्थ् कुसलेहिं परित्राविवेगे भासिए,चुए ह बाले|| गब्भाइएसुरजइ (रिजइ पा०), अस्सिं चेयं पवुच्चइ रूवंसिवा छणंसिवा,से हु एगेसंविद्धपहे (संविद्धभये पा०)(प्र० संचिट्टपहे)|| मुणी अन्नहा लोगभुवेहमाणे, इय कम्मं परिण्णाय सव्वसो से न हिंसइ संजमइ नो पगब्भइ उवेहमाणो पत्तेयं सायं, वण्णाएसी नारभे कंचणं सव्वलोए, एगण्यमुहे विदिसप्पइन्ने निविण्णचारी अरए पयासु १५५ोसे वसुमंसव्वसमन्त्रागयपनाणेणं अभ्याणेणं अकरणिंज |पावकम्मं तं नो अन्नेसी, जं संमंति पासहा तंभोणति पासहा जं भोणंति पासहा तं संमंति पासहा, न इभं सकं सिढिलेहिं अहिजमाणेहिं गुणासाएहिं वंकसभायारेहिं पमत्तेहिं गारमावसंतेहिं, मुणी मोणं समायाए धुणे सरीरगं, पंतं लूहं सेवंति वीरा सम्मत्तदंसिणो, एस ओहन्तरे मुणी तिण मुत्ते विरए वियाहिएत्तिबेमि।१५६। अ०५३०३॥
गामाणुगा दूइज्जमाणस्स दुजायं दुष्परक्तं भवइ अवियत्तम्स भिक्खुणो । १५७ वयसावि ऐ बुझ्या कुप्पंति माणवा, | ॥श्रीआचाराङ्ग सूत्र
| पू. सागरजी म. संशोधित
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