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जीवाणं सव्वेसिं सत्ताणं असायं अपरिनिव्वाणं महब्भयं दुक्खतिबेमि १३४। अ०४३०२॥
उवेहि णं बहिया य लोगं से सव्वलोगमि जे केइ विष्णू, अणुवीइ पास निक्खित्तदंडा, जे केइ सत्ता पलियं चयंति, नरा मुयच्चा धम्मवित्ति अंजू, आरंभज दुक्खमिणतिणच्चा, एवमा संसत्तदंसिणो, ते सव्वे पावाइया दुक्खस्स कुसला परिण्णमुदाहरंति इय कम्परिण्णाय सव्वसो १३५। इह आणाकंखी पंडिए अणिहे, एगमप्याणं सपेहाए धुणे सरीर कसेहि अप्पाणं जरेहि अव्याणं जहा जुनाई कट्ठाई हव्ववाहो पमत्थइ, एवं अत्तसमाहिए अणिहे विगिंच कोहं अविकंपमाणे ११३६ । इमं निरुद्धाज्यं सहाए दुक्खं च जाण अदु आगमेस्सं, पुढो फासाइंच फासे, लोयं च पास विफंदमाणं, जे निव्वुडा पावेहि कम्मेहिं अणियाणा ते वियाहिया तम्हा/ अतिविज्जो नो पडिसंजलिजासित्तिबेमि।१३७१ अ० ४३०३॥
आवीलए पीलए निप्पीलए जहित्ता पुव्वसंजोगं हिच्चा उवसम, तम्हा अविमणे वीरे सारए समिए सहिए सया जए, || दुरणुचरोमग्गो वीराणं अनियट्टगामीणं, विगिंच मंससोणियं, एस पुरिसे दविए वीरे आयाणिजे वियाहिए जे धुणाइ समुस्सयं वसित्ता बंभचेरंसि ११३८॥ नित्तेहिं पलिच्छिन्नेहि. आयाणसोयगढिए बाले अव्वोच्छिन्नबंधणे अणभिकंतसंजोए तमंसि अवियाणओ आणाए लंभोनस्थितिबेमि ॥१३९। जस्स नत्थि पुरा पच्छ। मझे तस्स कुओ सिया ?, से हु पत्राणमंते बुद्धे आरंभोकरए संममेयंति पासह जेण बंध वह घोरं परियावं च दारुणं, पलिछिदिय बाहिरगं च सोयं निकमदंसी इह मच्चिएहि, कम्माणं सफलं दगुण तओ निजाइ वेयवी | ॥श्रीआचाराङ्ग सूत्र॥
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[ पृ. सागर जी म. संशोषित
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