SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 34
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ।। १४० । जे खलु भो ! वीरा ते समिया सहिया सयाजया संघडदंसिणो आओ वरया अहातहं लोयं उवहमाणा पाईणं पडिणं दाहिणं | उईणं इय सच्चसि परि (चिए) चिट्ठिसु, साहिस्सामो नाणं वीराणं समियाणं सहियाणं सयाजयाणं संघडदंसीणं आओवरयाणं अहातहं लोयं समुवेहमाणाणं, किमत्थि उवाही पासगस्स ? न विज्जइ ? नत्थित्तिबेमि । १४१ ॥ ३० ४ सम्यकत्वाध्ययनं ४ ॥ आवंती के यावंती लोयंसि विप्परामुसंति अट्ठाए अणद्वाए, एएस चेव विप्परामुसंति (जावंति केई लोए छक्कायवहं समारभंति | अट्टाए अणट्ठाए अणट्ठाए वा पा० ) गुरू से कामा तओ से मारंते, जओ से मारते तओ से दूरे, नेव से अंतो नेव दूरे । १४२ । से पासइ फुसियमिव कुसग्गे पणुनं निवइयं वाएरियं, एवं बालस्स जीवियं मंदसस्स अवियाणओ, कूराई कम्माई बाले पकुव्वमाणे, तेण दुक्खेण मूढे विप्परिआसमुवेइ, मोहेण गब्धं मरणाई एइ, एत्थ मोहे पुणो पुणो । १४३ । संसयं परिआणओ संसारे परित्राए भवइ, संसयं अपरियाणओ संसारे अपरिन्नाए भवइ । १४४ । जे छेए से सागारियं न सेवइ, कट्टु एवमवियाणओ बिइया मंदस्म बालया (जे खलु विसए सेवइ, सेवित्ता वा णालोएइ, परेण वा पुट्ठो निण्हवड़, अहवा तं परं सएण वा दोसेण पाविट्ठयरेण वा दोसेण उवलिंपिज्जत्ति | पा० ) लद्धा हुरत्था पडिलेहाए, आगमित्ता आणविज्जा अणासेवणयत्तिबेमि । १४५ । पासह एगे रुवेसु गिद्धे परिणिजमाणे इत्थ फासे पुणो पुणो (एत्थ मोहे पुणो पुणो पा० ) आवंती के यावंती लोयंसि आरंभजीवी, एएस चेव आरंभजीवी, इत्थवि वाले परिपच्चमाणे रमई पावेहिं कम्मेहिं असरणे सरणंति मन्त्रमाणे, इहमेगेसिं एगचरिया भवड़ से बहुकोहे बहुमाणे बहुमाए बहुलोभे बहुरए बहुनडे ॥ श्रीआचाराङ्ग सूत्रं ॥ २३ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only
SR No.021002
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages147
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy