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||सहसंभइयाए परवागरणेण अनेसि वा अंतिए सुच्चा । १६८। निद्देसं नाइवट्टेजा, सुपडिलेहिया सव्वओ सव्वप्पणा (प्र० सव्वयाए|
सव्वमेव ) सम्मं समभिण्णाय इह आरामं परिणाय अल्लीणगुत्तो आरामो परिव्वए, निट्ठियट्ठी वीरे आगमेण सया परक्कमेजासित्तिबेमि | | १६९। डढं सोया अहे सोया, तिरियं सोया वियाहिया ।एए सोया विअक्खाया, जेहिं संगति पासह ॥१३॥आवटुं तु पेहाए इत्थ विरमिज वेयवी, विणइत्तु सोयं, निक्खम्म एस महं अकम्मा जाणइ पासइ पडिलेहाए, नावकंखइ इह आगई गई परित्राय । १७०।। अच्चेइ जाईमरणस्स वट्टमग्गं विक्खायरए, सव्वे सरा नियति तका जत्थ न विजइ, मई तत्थ न गाहिया, ओए अपइट्ठाणस खेयने, से न दीहे न हस्से न वट्टे न तंसे न चउरंसे न परिमंडले न किण्हे न नीले न लोहिए न हालिद्दे न सुकिल्ले न सुरभिगंधे न दुरभिगंधे न तिते न कुडुए न कसाए न अंबिले न महुरे न कक्खडे न मउए न गरुए न लहए न सीए न उण्हे न सिद्धे न लुक्खे न काओ न रुहे न संगे| न इत्थी न पुरिसे न अनहा, परिन्ने सन्ने उवमा न विजए, अरूवी सत्ता, अपयस्स पयं नस्थि । १७१। से न सहे न रूवे न गंधे न रसे न फासे इच्चेवत्तिबेमि । १७२ ॥३० ६ लोकसाराध्ययनं ५ ॥
ओबुझमाणे इह.माणवेसु आघाइ से नरे जस्स इमाओ जाइओ सव्वाओ सुपडिलेहियाओ भवंति, आघाइ से नाणमणेलिस, से किइ तेसिं समुट्ठियाणं निक्खित्तदण्डाणं समाहियाणं पत्राणमंताणं इह मुत्तिमागं एवं ( अवि) एगे महावीरा विष्परिकमंति, पासह |एगे अवसीयमाणे अणत्तपन्ने, से बेमि से जहावि (सेवि) कुंभे हरए विणिविद्वचित्ते पच्छन्नपलासे उम्मगं से नो लहइ भंजगा इव ॥ ॥श्रीआचाराङ्ग सूत्र |
पू. सागरजी म. संशोधित
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