SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 26
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org | लोगस्स अहो भागं जाणइ उड्डुं भागं जाणइ तिरियं भागं जाणइ गड्ढिए लोए अणुपरियट्टमाणे संधिं विइत्ता इह मच्चिएहिं, एस वीरे पसंसिए जे बद्धे पडिमोयए, जहा अंतो तहा बाहिं जहा बाहिं तहा अंतो, अंतो अंतो पूड़देहंतराणि पासइ पुढोवि सवंताइ पंडिए पडिलेहाए । ९४ । से मइमं परित्राय मा य हु लालं पच्चासी, मा तेसु तिरिच्छमण्याणमावायए, कासंकासे खलु अयं पुरिसे, बहुभाई कडेण मूढे, पुणो तं करेइ लोहं वेरं वड्ढेइ अध्पणो, जमिणं परिकहिज्जइ इमस्स चेव पडिबूहणाए, अमरायड़ महासड्डी, अट्टमेयं तु | पेहाए अपरिण्णाए कंदइ । ९५ । से तंजा (आजा० चू०) गह जमहं बेभि, तेइच्छं पंडिए पवयमाणे से हंता छित्ता भित्ता लुंपइत्ता | विलुंपइत्ता उद्दवइत्ता, अकडं करिस्सामित्ति मन्त्रमाणे, जस्सवि य णं करेइ, अलं बालस्स संगेणं, जे वा से कारइवाले, न एवं अणगारस्स जायइत्ति बेमि । ९६ । अ० २३०५ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir से तंबुज्झमाणे आयाणीयं समुट्ठाय तम्हा पावकम्मं नेव कुज्जा न कारवेजा । ९७ । सिया तत्थ एगयरं विपरामुसइ छसु | अन्नयरंभि कप्पइ सुहट्टी लालप्पमाणे, सएण दुक्खेण मूढे विप्परियासमुवेइ, सएण पुढो वयं पकुव्वइ, जंसिमे पाणा पव्वहिया | पडिलेहाए नो निकरणयाए, एस परिन्ना पवुच्चइ कम्मोवसंती । ९८ । जे ममाइयमई जहाइ से चयइ ममाइयं, से हु दिट्ठपहे मुणी जस्स नत्थि ममाइयं, तं परित्राय मेहावी विइत्ता लोगं वंता लोगसन्नं से मइमं परिक्कमिज्जासित्तिबेमि ।'नारई सहई वीरे, वीरे न सहई रतिं । जम्हा अविमणे वीरे, तम्हा वीरे न रज्जइ ॥ २ ॥ ९९ ॥ सद्दे फासे अहियासमाणे, निव्विद नंदिं इह जीवियस्स । मुणी मोणं समायाय, धुणे पू. सागरजी म. संशोधित ॥ श्रीआचाराङ्ग सूत्रं ॥ १५ For Private And Personal Use Only
SR No.021001
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages147
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy