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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७२ अनुयोगद्वारसूत्रे इति सूत्रेण छप्रत्यये सिद्धिः । मूले-'रण्णो ससुराए, रणो जामाउर' इत्यादि विग्रहमा निर्दिष्टम् । तथा-समीपार्थ अदूरभवाथै 'अद्भवश्व' इत्यण तद्धितप्रत्ययेन यन्नाम निष्पद्यते-तत् समीपनाम । यथा-गिरेः समीपे नगरं-गैर-गिरिवटम् , विदिशायाः समीपे नगरं वैदिशं नगरम्, वेन्नायाः समीपे नगरं वैन्वेन्नातटं, तगरायाः समीपे नगरं तागरं-तगरावटामिति । गिरि नगरम् , वेन्नातटम् , तगरातटमिति लोकप्रसिद्धिः। का ससुर राजकीय जामाता-राजा का जमाई इत्यादि । इन प्रयोगों में . राज्ञा कच' इस सूत्र से राजन् शब्द में छ प्रत्यय होकर छ को ईय् प्रत्यय हुआ है। मूल में "रणो ससुराए, रणो जामाउए" इत्या. दिविग्रहमात्र दिखलाया है ! (से तं संजोगनामे ) इस प्रकार यह संयोग नाम है। (से किं तं समीवनामे ?) हे भदन्त ! समीप नाम क्या है ? अर्थात् समीप अर्थ में तद्धित प्रत्यय संबन्धी अण् के होने पर जो नाम बनता है वह कैसा होता है ? (समाव नामे) वह समीप नाम ऐसा होता है-जैसे (गिरि समीवेणघरं गेरं-गिरिणयरं, विदिसा समीवे जयरं-वेदिसं, वेन्नाए समीवे णथरं-बेन्नायडं, तगराए समीवे जय तागरं तगरायडं-से तं समीवनामे) गिरि के समीप का नगरगैर, गिरि नगर, विदिशा के समीप का नगर वैदिश, वेन्ना के समीप का नगर वैन्न वेन्नातट, तगरा के समीप का नगर तागर-तगरातटगिरिनगर, वेन्नातट, तगरातट ऐसी लोक में प्रसिद्धि है । इस प्रकार राज्ञः अयं राजकीयः-श्वसुरः-२० ससरे, राजीय माता-२ मा कोरे । प्रयोगमा 'राज्ञ: कच' या सूत्र १ २४ ७४मा 'छ' प्रत्यय था 'ई' ये छे. भूगमा 'रण्णो ससुराए, रणो जामाउए' वगैरे ३४त विघड । २५ष्ट ४२वामा मा०ये। छे. (से त संजोगनामे) मा प्रमा) मा सयो नाम छे. (से कि त समीवनामे) लत ! सभी५ નામ શું છે? એટલે કે સમીપ અર્થમાં તદ્ધિત પ્રત્યય સંબંધી “r” પ્રત્યય थवाथी नाम निपन थाय छे, ते डाय छे. (समीवनामे) ते सभी५ नाम भी प्रभारी डाय छ रेम (गिरी समीवे णयरं गैरं-गिरिणयर. बना ममीले यर-वेदिसं, वेन्नाए समीवे णयर वेन्नं वेन्नाउय तगराए समीवे णयर तागर तगरायडं-से त' समीवनामे) GIRनी पासेनु न॥२-२, ગિરિનગર વિદિશાની પાસેનું નગર વૈદિશ, વેનાની પાસેનું નગર વેન્ન વૈજ્ઞાતટ. તગરાની પાસેનું નગર તાગર, તગરતટ, ગિરિનગર વેન્નાતટ તગशतः मेवी मां प्रसिद्धि छे. भप्रमाणे मा समी५ नामा छ. (से कि For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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